तम्हीद
चूंकि इंसान का कमाल और उसकी सआदत ईमान व अमल की सेहत पर मौकूफ है और यह बगैर इल्म दीन ना मुमकिन है इसलिये हर शख्स जो अपनी जिन्दगी को सालेह व कामयाब बनाना चाहता है उसके लिये जरूरी है कि वह दीन का इल्म हासिल करे। इल्म दीन की चार किस्में हैं। पहली किस्म में वह मसायल हैं जिनका ताल्लुक ईमान व अकीदा से है (जैसे तौहीद, रिसालत, नबुव्वत, जन्नत, दोजख, हश्र, सवाब अज़ाब वगैरह) दूसरी किस्म में वह बातें हैं जिनका ताल्लुक (इबादत बदनी व माली से हैं (जैसे नमाज, रोजा, हज, ज़कात वगैरह) तीसरी किस्म में वह चीजें हैं जिनका ताल्लुक मुआमलत व मआशरत से है (जैसे खरीद व फरोख्त, निकाह, तलाक, अत्ताक, जिहाद, हुकूमत, सियासत वगैरह) चौथी किस्म में वह उमूर हैं जिनका ताल्लुक अखलाक व आदात जज्बात व मलकात से है (जैसे शुजाअत, सखावत, सब, शुक्र वगैरह ) ।
ख्याल तो यह था कि चारों किस्में एक साथ शाया होतीं लेकिन किताब अंदाजे से काफी ज्यादा जखीम हो गयी इसलिये नाचार दो हिस्से कर दिये। पहले हिस्से में अकायद, नमाज, रोजा, जकात, कुरबानी व अकीका तक के तमाम सायल ब्यान किये गये हैं। दूसरे हिस्से में हज, निकाह, तलाक, खरीद व फरोख्त, हज व अबाहता वगैरह के मसायल हैं।
तंबीह : इस किताब कानूने शरीअत में इख्तेलाफात व अदला से असला ताअरुज़ न होगा कि शान मुख्तसरात के खिलाफ है और मुब्तदियों व कम इल्मों के लिये बाइसे तहीर व अशकाल भी। नीज़ इस किताब में सिर्फ बहुत ज़रूरी जरूरी कसरत से पेश आने वाले मसायल को ब्यान किया गया है और हर मसले का माखज़ सुन्नी हनफी दीनीयात की निहायत मोतबर व मुसतनद किताबें हैं जैसा कि हवालों से जाहिर है। जहां तक हो सका है पैराए ब्यान व ज़बान को भी बहुत सहल करने की कोशिश की गयी है और इस कोशिश में फसाहत जबान को भी परवा नहीं की गयी है। रब तबारक व तआला इस सअई को कबूल फरमाये । आमीन।
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
अकायद का ब्यान
अल्लाह तआला की जात और सिफात के अकीद अकीदा - अल्लाह एक है पाक है वे मिस्ल वे ऐब है हर कमाल व खूबी का | जामेअ है कोई किसी बात में न उसका शरीक न बराबर न उससे बढ़कर वह अपनी तमाम सिफाते कमालिया के साथ हमेशा से है और हमेशा रहेगा। हमेशगी सिर्फ उसी की जात व सिफात के लिये है उसके सिवा जो कुछ है पहले न था जब उसने पैदा किया तो हुआ। वह अपने आप है। उसको किसी ने पैदा नहीं किया न वह किसी का बाप न किसी का बैटा न उसके कोई बीवी न रिश्तेदार सबसे बेनियाज यह किसी बात में किसी का मोहताज नहीं और सब उसके मोहताज । रोजी देना, मारना, जिलाना, उसी के इख्तेयार में है। वह सबका मालिक जो चाहे करे उसके हुक्म में कोई दम नहीं मार सकता। वे उसके चाहे बिना एक पत्ता | नहीं हिल सकता। वह हर खुली छुपी होनी अनहोनी को जानता है कोई चीज़ उसके इल्म से बाहर नहीं, दुनिया जहान सारे आलम की हर चीज़ उसी की पैदा की हुई हैं। सब उसके बंदे हैं वह अपने बंदों पर मां-बाप से ज्यादा मेहरबान रहम करने वाला, गुनाह बख़्शने वाला, तौबा कबूल फरमाने वाला है।
उसकी पकड़ निहायत सख्त जिससे वे उसके छुड़ाये कोई छूट नहीं सकता, इज्जत जिल्लत उसी के इख़्तेयार में है जिसे चाहे इज्जत दे जिसे चाहे जलील करे, माल व दौलत उसी के कब्जे में है जिसे चाहे अमीर करे, जिसे चाहे फकीर करे।
हिदायत व गुमराही किसकी तरफ से है? हिदायत व गुमराही उसी की तरफ से है जिसे चाहे ईमान नसीब हो जिसे चाहे कुफ में मुब्तला हो। वह जो करता है हिकमत है, इंसाफ है, मुसलमानों को जन्नत अता फरमायेगा, काफिरों पर दौज़ख में अजाब करेगा, उसका हर काम हिकमत है, बंदे की समझ में आये या न आये। उसकी नेमतें, उसके एहसान बेइंतेहा हैं वही इस लायक है कि उसकी इबादत की जाये उसके सिवा दूसरा
कोई इबादत के लायक नहीं । ख़ुदा तआला की तंजीह
अकीदा अल्लाह तआला जिस्म व जिरमानियात से पाक है यानी न वा जिस्म है, न उसमें वह बातें पाई जाती हैं जो जिस्म से ताल्लुक रखती है बल्कि यह उसके हक में मुहाल है। लिहाजा वह ज़मान न मकान तरफ व जेहत शक्ल
व सूरत, वजन व मिकदार ज़्यादा व नुक्सान (यानी कमी य बेशी) हुलूल (समा जाना) या अवतरित होना व इत्तेहाद (यानी दो चीजों का मिलकर एक हो जाना) तवाद व तनासुल, हरकत व इंतकाल लगय्युर, तबहुल वगैरह तमाम औसाफ व अहवाले जिस्म से मुनज्जह व बरी है और कुरआन व हदीस में जो बाज़ ऐसे अल्फाज़ आये है मसलन यद (हाथ), वजहिही (चेहरा), रजुल (पांच), ज़ेहक (हंसना) वगैरह जिनका जाहिर जिस्मियत पर दलालत करता है उनके ज़ाहिरी मायने लेना गुमराही व बदमज़हबी है। इस किस्म के अल्फाज़ में ताबील की जाती है क्योंकि इनका ज़ाहिर मुराद नहीं कि उसके हक में मुहाल है मसलन यद की तादील कुदरत से और वजहिही की जात से इस्तेवा की गल्या व तवज्जोह से की जाती है लेकिन बेहतर व असलम यह है कि बिला जरूरत तावील भी न की जाये बल्कि हक होने का यकीन रखे और मुराद को अल्लाह के सुपुर्द करे कि वही जाने अपनी मुराद। हमारा तो अल्लाह और रसूल के कौल पर ईमान है कि इस्तेवा हक है, यद हक है, और उसका इस्तेवा मखलूक का सा इस्तेवा नहीं उसका यद मखलूक का सा यद नहीं उसका कलाम देखना, सुनना मखलूक का सा नहीं ।
अकीदा : अल्लाह तआला की जात व सिफात न मखलूक है न मकदूर । क्या चीजें हादिस हैं और क्या क़दीम
अकीदा जात व सिफाते इलाही के अलावा जितनी यानी पहले न थी फिर मौजूद हुई। चीजें है सब हादिस
अकीदा : सिफाते इलाहिया को मखलूक कहना या हादिस बताना गुमराही हैं व बद दीनी है।
अकीदा : जो शख्स अल्लाह तआला की जात व सिफ़ात के अलावा किसी और चीज को कदीम माने या आलम के हादिस होने में शक करे वह काफिर है ।
अकीदा : जिस तरह अल्लाह तआला आलम और आलम की हर चीज़ का खालिक है उसी तरह हमारे आमाल व अफआल का भी वही खालिक है।
अल्लाह तआला की खालकियत व वजुब व वजूद के मायने है अल्लाह तआला वाजिबुल वजूद है यानी उसका वजूद ज़रूरी है और अदम मुहाल (नामुमकिन) । अल्लाह तआला का इल्म व इरादा
अकीदा : कोई चीज़ अल्लाह तआला के इल्म से बाहर नहीं, मौजूद हो या मादूम, मुमकिन हो या मुहाल कुल्ली हो या जुज्बी (भाग) सबको अजल में जानता था, और अब जानता है और अबतक जानेगा। चीजें बदलती है लेकिन उसका इल्म नहीं बदलता, दिलों के खतरों और वसवसों की उसको ख़बर है उसके इल्म की कोई इंतेहा नहीं।
अकीदा अल्लाह तआला की मशीयत व इरादा के बगैर कुछ नहीं हो सकता मगर अच्छे पर खुश होता है और बुरे पर नाराज़ अल्लाह तआला की कुदरत
अकीदा : अल्लाह तआला हर मुमकिन पर कादिर है कोई मुमकिन उसकी कुदरत से बाहर नहीं और मुहाल तहते कुदरत नहीं। मुहाल पर कुदरत मानना उलूहियत का इंकार करना है।
अकीदा खैर व शर कुफ्र व ईमान ताअत व इस्थान अल्लाह ही की तकदीर व तखलीक से है। अकीदा हकीकतन रोज़ी पहुंचाने वाला वही है फरिश्ते वगैरह वसीला और वास्ता हैं।अल्लाह तआला पर कुछ वाजिब नहीं
अकीदा : अल्लाह तआला के ज़िम्मे कुछ वाजिब नहीं न सवाब देना न अज़ाब करना, न वह काम करना जो बंदे के हक में मुफीद हो इसलिये कि वह मालिक अलल इतलाक है जो चाहे करे जो चाहे हुक्म दे। सवाब दे तो फज्ल अजाब करे तो अदल । हां उसकी यह मेहरबानी कि वही हुक्म देता है जो बंदा कर सके ज़रूर मुसलमानों को अपने फज्ल से जन्नत देगा और काफिरों को अपने अदल से जहन्नम में डालेगा इसलिये कि उसने वादा करमा लिया है कि कुछ के सिवा जिस गुनाह को चाहेगा माफ कर देगा और उसके वादे वईद बदलते नहीं इसलिये अजाब व सवाब ज़रूर होगा।
अल्लाह तआला का इस्तिगना अकीदा अल्लाह तआला आलम से बेपरवाह है उसको कोई नफा नुक्सान नहीं पहुंचा सकता। यह जो कुछ करता है उसमें उसका अपना कोई फायदा या गर्ज नहीं। दुनिया को पैदा करने में न कोई उसका फायदा और न पैदा करने में कोई नुक्सान |
अल्लाह तआला ने आलम को क्यों पैदा किया?
अपना फ़ज़्ल व अदल कुदरत व कमाल ज़ाहिर करने के लिये मखलूक को पैदा किया।
अकीदा अल्लाह तआला के हर काम में बहुत हिकमतें हैं, हमारी समझ में आये या न आये यह उसकी हिकमत है कि दुनिया में एक चीज को दूसरी चीज़ का सबब ठहराया। आग को गर्मी पहुंचाने का सबब, पानी को सर्दी पहुंचाने का सबब बनाया, आंख को देखने के लिये कान को सुनने के लिये बनाया अगर वह चाहे तो आग सर्दी, पानी गर्मी दे और आंख सुने कान देखे।
ख़ुदा की हर ऐव से पाकी
अकीदा ख़ुदा के लिये हर ऐब और नक्स मुहाल है जैसे झूठ, जहल, भूल, जुल्म बेहयाई वगैरह तमाम बुराईयां ख़ुदा के लिये मुहाल है और जो यह माने कि खुदा झूठ बोल सकता है लेकिन बोलता नहीं तो गोया वह यह मानता है कि ख़ुदा ऐबी तो हैं लेकिन अपना ऐब छुपाये रहता है फिर एक झूठ पर ही क्या खत्म सब बुराईयों का यही हाल हो जायेगा कि उसमें है तो लेकिन करता नहीं जैसे जुल्म, चोरी, फना, तवालुद व तनासुल, वगैरह उयूबे कसीरा ख़ुदा के लिये किसी नक्स व ऐब को मुमकिन जानना ख़ुदा को ऐसी मानना है बल्कि खुदा ही का इनकार करना है अल्लाह तआला ऐसे गंदे अकीदे से हर आदमी को बचाये रखे।
तकदीर :अल्लाह तआला के इल्म में जो कुछ आलम में होने वाला था और जो कुछ बंदे करने वाले थे उसको अल्लाह तआला ने पहले ही से जान कर लिख लिया। किसी की किस्मत में भलाई लिखी और किसी की किस्मत में बुराई लिखी इस लिख देने ने बंदे को मजबूर नहीं कर दिया कि जो अल्लाह तआला ने लिख दिया वह बंदे को मजबूरन करना पड़ता है बल्कि बंदा जैसा करने वाला था वैसा ही उसने लिख दिया। किसी आदमी की किस्मत में बुराई लिखी तो इसलिये कि यह आदमी बुराई करने वाला था अगर यह भलाई करने वाला होता तो उसकी किस्मत में भलाई ही लिखता अल्लाह तआला के इल्म ने या अल्लाह तआला के लिख देने ने किसी को मजबूर नहीं कर दिया।
मसला : तकदीर के मसले में गौर व बहस मना है। बस इतना समझ लेना चाहिये कि आदमी पत्थर की तरह मजबूर नहीं है कि उसका इरादा कुछ हो ही नहीं बल्कि अल्लाह तआला ने आदमी को एक तरह का इख्तेयार दिया है। कि एक काम चाहे करे चाहे न करे इसी इस्तेयार की बिना पर नेकी व बदी की निस्बत बंदे की तरफ है अपने आपको बिल्कुल मजबूर या बिल्कुल मुख्तार समझना दोनों गुमराही है। बुरे काम की निस्बत किसकी तरफ की जाये
मसला : बुरा काम करके यह न कहना चाहिये बे अदबी है कि खुदा ने चाह तो हुआ, तकदीर में था किया बल्कि हुक्म यह है कि अच्छे काम को कहे कि खुदा की तरफ से और बुरे काम को अपने नफ़्स की शरारत शामत जाने ।
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