बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
Topic
{1} पहला इंसान
{2} Talking about to fast man of world
{3} Refrance
{4} क़ससुल अंबिया
{5} (अल-क्रियाम: 75/36)
दुनिया का सबसे पहला इंसान कोन था?
{1} पहला इंसान
चलिए जानते है दुनिया का सबसे पहला इंसान कोन था?हजरत आदम अलैहिस्सलाम के बारे में कुरआन मजीद ने जो हक़ीक़तें बयान की हैं, उनके तफ़सीली तज़्किरे से पहले यह साफ़ हो जाना जरूरी है कि इंसान के आलमे वुजूद में आने का मस्अला आज इल्मी निगाह से बहस का एक नया दरवाजा खोलता है, यानी Evolution (विकास) का यह दावा है कि मौजूदा इंसान अपनी शुरूआती पैदाइश ही से इंसान पैदा नहीं हुआ, बल्कि मौजूद कायनात में उसने बहुत से दर्जे तय करके मौजूदा इंसानी शक्ल हासिल की इसलिए कि जिंदगी की शुरूआत ने कंकड़-पत्थर, पेड़-पौधों की अलग-अलग शक्लें अख्तियार करके हज़ारों-लाखों वर्ष बाद एक-एक दर्जा तरक़्क़ी करते-करते पहले लबूना (पानी की जोंक) का जामा पहना और फिर ऐसी ही लम्बी मुद्दत के बाद जानदारों के अलग-अलग छोटे-बड़े तबकों से गुज़र कर मौजूदा इंसान की शक्ल अपनाई। और मज़हब यह कहता है कि कायनात के पैदा करने वाले ने पहला इंसान हज़रत आदम की शक्ल ही में पैदा किया और फिर उसकी तरह एक हमजिंस मख़्लूक़ हव्वा को वजूद देकर दुनिया में इंसानी नस्ल का सिलसिला क़ायम किया और यही वह इंसान है जिसको कायनात के पैदा करने वाले ने तमाम पैदा की हुई चीजों पर बरतरी और बुजुर्गी अता फ़रमाई और अल्लाह की अमानत का भारी बोझ उसके सुपुर्द फ़रमाया और कुल कायनात को उसके हाथ में सधा कर अल्लाह के खलीफ़ा और नायब होने का शरफ़ उसी को बख़्शा।
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दुनिया का पहला इंसान, pic by pixaby.com |
{2} Talking about to fast man of world
लोगो के हमेशा से ये सवाल रहे है। की की दुनिया के सबसे पहले व्यक्ति कोन थे? पृथ्वी पर पहला मानव कोन था।पृथ्वी पर रहने बाला पहला व्यक्ति कोन था ।हम आगे इसी पर बात करेंगे।
हिंदू धर्म के मुताबिक ,धरती का पहला इंसान मनु था। संस्कृत में मनु को मनुष्य और हिंदी में मानव कहा गया है।इस्लाम में मान्यता है की अदम धरती के सबसे पहले इंसान है।इस्लाम में अदम को पृथ्वी का सबसे पहला इंसान और इस्लाम का सबसे पहला पैगम्बर माना जाता है। मुसलमान अदम अलेहिस्सलाम को पृथ्वी का सबसे पहला इंसान मानते है।
'बेशक, हमने इंसानों को बेहतरीन अन्दाज से बनाया है।'
(तीन 95/4)
'बेशक हमने आदम की नस्ल को तमाम कायनात पर बुजुर्गी और बरतरी बख्शी ।'
'मैं जमीन पर आदम को अपना खलीफा बनाने वाला हूं।'
'हमने अमानत के बोझ को आसमानों और जमीन पर पेश किया, तो उन्होंने (यानी कुल कायनात ने) अल्लाह की अमानत के बोझ को उठाने से इंकार कर दिया, और इससे डर गए और इंसान ने उस भारी बोझ को उठा लिया।'
{3} Refrance
क़ससुल अंबिया
- (अल-इसरा 14/7)
- (अल-बकरः 2/30)
- (अल-अहजाब 33/72)
अब सोचने की बात यह है कि Evolution और धर्म के बीच इस खास मसुञ्जले में इल्मी तजाद (विरोधाभास) है या ततबीक़ (मेल) की गुंजाइश निकल सकती है, ख़ास तौर से जबकि इल्म और तजुर्बे ने यह सच्चाई खोल कर रख दी है कि दीनी और मजहबी हक़ीक़तों और इल्म के दर्मियान किसी भी मामले में टकराव नहीं है। अगर जाहिरी सतह पर कहीं ऐसा नजर भी आता है तो वह इल्म की हक़ीक़तों के छुपे होने की वजह से नजर आता है, क्योंकि बार-बार यह देखा गया है कि जब भी इल्म की छुपी हक़ीक़तों पर से परदा उठा, तो उसी वक्त तजाद भी जाता रहा और वही हक़ीक़त निखर कर सामने आ गई जो अल्लाह की वह्य के जरिए जाहिर हो चुकी थी। दूसरे लफ़्ज़ों में कह दीजए कि इल्म और मजहब के दर्मियान अगर किसी वक़्त भी तजाद नजर आया, तो नतीजे के तौर पर इल्म को अपनी जगह छोड़नी पड़ी और अल्लाह की वह्य का फैसला अपनी जगह अटल रहा।
इस बुनियाद पर इस जगह भी कुदरती तौर पर यह सवाल सामने आ जाता है कि इस ख़ास मस्अले में हक़ीक़ते हाल क्या है और किस तरह है? जवाब यह है कि इस मामले में भी इल्म और मजहब के दर्मियान कोई टकराव नहीं है, अलबत्ता यह मस्अला चूंकि बारीक और गूढ़ बातें अपने भीतर समोए हुए है, फिर भी यह हक़ीक़त इस जगह हमेशा नजरों में रहनी चाहिए कि पहला इंसान, (जो कि मौजूदा इंसान की नस्ल का बाबा आदम है, भले ही
{4} क़ससुल अंबिया
13 तरक़्क़ी (Evolution) के नज़रिए के मुताबिक़ दर्जा-ब-दर्जा इंसानी शक्ल तक पहुंचा हो या पैदाइश की शुरूआत ही में इंसानी शक्ल में बुजूद में आया हो इल्म और मज़हब दोनों का इस पर इत्तिफ़ाक़ (सहमति) है कि मौजूदा इंसान ही इस कायनात की सबसे बेहतर मख़्लूक़ है और अक़्ल और सूझ-बूझ का ढांचा ही अपने अमल और किरदार के लिए जवाबदेह है और दस्तूर व क़ानून का मुकल्लफ़ है या इस तरह समझ लीजिए कि इंसानी किरदार और उसके इल्मी और अमली, साथ ही अख़लाक़ी किरदार को देखते हुए इस बात की कोई अहमियत नहीं है कि इसके पैदा होने, ढलने और वजूद की दुनिया में आने की तफ़सील क्या है, बल्कि अहमियत की बात यह है कि इस पैदा हुई दुनिया में उसका बुजूद यों ही बे-मतलब और बेमक्सद है या उसकी हस्ती अपने भीतर बहुत बड़ा मक्सद लेकर वजूद में आई है? क्या उसके अफ़आल व अक़वाल और किरदार व गुफ़्तार (कर्म-कथन, चरित्र-आचरण) के असरात (प्रभाव) बहुत अधिक हैं? क्या उसकी माद्दी और रूहानी कुदरतें सब की सब बेकार और बे-नतीजा हैं या क़ीमती फलों से लदी हुई और हिक्मत से भरी हुई हैं? और क्या उसकी ज़िंदगी अपने भीतर कोई रौशन व ताबनाक हक़ीक़त रखती है और घोर अंधेरे वाले भविष्य (मुस्तक़्बिल) का पता देती है और उसका माजी व हाल अपने मुस्तनिबल को नहीं जानता ?
पस अगर इन हक़ीक़तों का जवाब 'नहीं' में नहीं, बल्कि 'हां' में है तो फिर कुदरती तौर पर यह मानना ही होगा कि उसकी पैदाइश की कैफ़ियत (दशा) पर बहस की जाए, उसके वुजूद के मक्सद पर पूरी निगाह रखी जाए और यह मान लिया जाए कि पैदा की हुई चीज़ों में सबसे बेहतर हस्ती का बुजूद बेशक बड़े मक्सद का पता देता है और इसलिए उसकी अख़लाक़ी क़द्रों का जरूर कोई 'मसले आला' (बड़ी नज़ीर) और उसकी पैदा करने का कोई मक़्सद है।
कुरआन पाक ने इसीलिए हज़रत इंसान से मुताल्लिक़ पॉज़िटिव और निगेटिव हर दो पहलू को वाज़ेह करके इंसानी हस्ती के बड़प्पन का एलान किया है और बतलाया है कि कायनात के पैदा करने वाले और बनाने-संवारने वाले की कुदरत में इंसान की पैदाइश 'सबसे बेहतर' का दर्जा रखती है और
दुनिया का पहला इंसान, pic by pixaby.com
क़ससुल अंबिया में इन सभी बातों पर रोशनी डाली गई है ।ताकि लोगो की रहनुमाई की जा सके।
इसी वजह से वह तमाम कायनात के मुकाबले में 'बड़े होने और अजीम होने' का हक़दार है और अपने कामों और तरीक़ों की वजह से बेहतर। वही अल्लाह की अमानत का अलमबरदार होकर 'अल्लाह का खलीफ़ा' के मंसब पर बने रहने का हक रखता है और जब यह सब कुछ उसमें मौजूद है तो फिर यह कैसे मुम्किन था कि उसकी हस्ती को यों ही बेमक्सद और बेनतीजा छोड़ दिया जाता ।
'क्या लोगों (इंसानों) ने यह गुमान कर लिया है कि वे बेमक्सद छोड़ दिए जाएंगे?'{5} (अल-क्रियाम: 75/36)
और जरूरी है कि अक़्ल व शऊर के इस पैकर को तमाम कायनात में नुमायां बनाकर नेकी व बुराई की तमीज अता की जाए और बुराई से परहेज और भलाई के अख्तियार का मुकल्लफ़ (जिम्मेदार) बनाया जाए।
*(अल्लाह तआला ने) इंसान को पैदा किया और फिर (नेकी और बदी की) राह दिखाई।' (ताहा 20/50)' फिर हमने इंसान को दोनों रास्ते (नेकी और बुराई) दिखाए।'
(अल-बलद 90/10)
गरज कुरआन मजीद की याददेहानी और दावत, भलाइयों को करने और बुराइयों को रोकने और रुश्द व हिदायत का मुखातब और शुरू और आखिर का मेह्यवर व मर्कज़ सिर्फ यही हस्ती तो है, जिसको 'इंसान' कहते हैं और यही वजह है कि कुरआन ने पहले इंसान की पैदाइश की कैफ़ियतों और तफ्सीलों को नज़रअंदाज़ करके उसके शुरू और आख़िर को ही यह अहमियत दी है- ख़िरदमंदों से क्या पूहूं कि मेरी इब्तिदा क्या है कि मैं इस फ़िक्र में रहता हूं मेरी इंतिहा क्या है
दुनिया का सबसे पहला इंसान ।पार्ट 2👇
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