हज़रत हूद
आद का जमाना
आद का जमाना लगभग दो हज़ार साल कब्ल मसीह माना जाता है और कुरआन मजीद में आद को 'मिम बादि नूह' कहकर नूह क्रीम के खलीफों के गिना गया है, साथ ही उनको आदे ऊला कहा है और आद के साथ इरम का लफ़्ज़ लगा हुआ है।
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हज़रत हूद. pixaby .com |
आद के रहने की जगह
आदे का मर्कज़ी मक़ाम अरजे अहक़ाफ है। यह हजर मौत के उत्तर में इस तरह वाले है कि इसके पूरब में ओमान और उत्तर में राबेअ अल-खाली। मगर आज यहां रेत के टीलों के सिवा कुछ नहीं है।
आद का मज़हब
आद बुत-परस्त थे और अपने पेशे और नूह की क़ौम की तरह सनमपरस्ती और बुततराशी में माहिर थे। हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास से एक असर मंकूल है। इसमें है कि इनके एक सनम का नाम समूद और एक का नाम हतार था।
(हामीम खन्दा 41)
उन्होंने अपनी क्रीम की अल्लाह की तौहीद और उसकी इबादत की तरफ दावत दी और लोगों पर जुल्म व जौर करने से मना फ़रमाया। मगर आद ने एक न मानी। उनको सख्ती के साथ झुठलाया और गुरूर और घमंड के साथ कहने लगे, 'मन अशडु मिन्ना कुव्यः' (हम में से ज्यादा कीन है कुव्वतआज दुनिया में हम से ज्यादा शीकत व जबरूत का कौन मालिक है? मगर हजरत हूद ३ लगातार इस्लाम की तब्लीग में लगे रहे। वह अपनी कौम को अल्लाह के अजाब से डराते और गुरूर व सरकशी के नतीजों को बताकर नूह की क्रीम के वाक्रिए याद दिलाते और कभी इर्शाद फ़रमाते- 'ऐ क्रीम! अपनी जिस्मानी ताक़त और हुकूमत के ज़बरदस्त होने पर घमण्ड न कर, बल्कि अल्लाह का शुक्र अदा कर कि उसने तुझको यह दौलत बख्शी। नूह क्रीम की तबाही के बाद जमीन का तुझको मालिक बनाया, खुशपेशी, फ़ारिगुलबाली और खुशहाली अता की, इसलिए उसकी नेमतों को न भूल और खुद के गढ़े हुए बुतों की परस्तिश से बाज़ आ, जो न नफ़ा पहुंचा सकते हैं और न दुख दे सकते हैं। मौत व जिंदगी, नफा-नुक्सान सब एक अल्लाह ही के हाथ में है। ऐ क्रीम के लोगो! माना कि तुम सरकशी और उसकी नाफ़रमानी में मुब्तला रहे हो, मगर आज भी अगर तौबा कर लो और बाज़ आ जाओ तो उसकी रहमत फैली हुई है और तीबा का दरवाजा बंद नहीं हुआ है। उससे मफ़िरत चाही, वह बख्श देगा। उसकी तरफ रुजू हो जाओ, वह माफ़ कर देगा और माल व इज्ज़त में सरफराजी बख्शेगा।
आद को हज़रत हूद की ये नसीहतें बहुत गरां गुज़रती थीं और वे यह नहीं सह सकते थे कि उनके ख्यालों, उनके अक़ीदों और उनके कामों, गरज यह कि उनके इरादों में कोई आदमी रुकावट पैदा करे, उनके लिए मेहरबान नसीहत करने वाला बने, इसलिए अब उन्होंने यह रवैया अपनाया कि हजरत हृद का मजाक उड़ाया, उनको बेवकूफ़ समझा और उनकी मासूमियत भरी हक़ वाली सच्चाइयों की तमाम यक्क्रीनी दलीलों और मिसालों को झुठलाना शुरू कर दिया और कहने लगे-
हज़रत हूद
आद अपनी ममलक्त की सतवत व जबरूत, जिस्मानी सूरत व गुरूर में ऐसे चमके कि उन्होंने एक अल्लाह को बिल्कुल भुला दिया और अपने हाथों के बनाए हुए बुतों को अपना माबूद मानकर हर क़िस्म के शैतानी आमाल बे-खौफ़ व खतर करने लगे, तब अल्लाह तआला ने उन्हीं में से एक पैग़म्बर हज़रत हूद को भेजा। हज़रत हूद ॥ आद की सबसे ज़्यादा इज़्ज़तदार शाखा 'खुलूद' के एक फ़र्द (व्यक्ति) थे। सुर्ख व सफ़ेद रंग और बहुत खुबसूरत थे। उनकी दाढ़ी बड़ी थी।
'मैं अल्लाह को और तुम सबको गवाह बनाकर सबसे पहले यह एलान करता हूं कि मैं इस अक़ीदे से बिल्कुल अलग हूं कि इन बुतों में न यह कुदरत कि मुझको या किसी को किसी क़िस्म की भी कोई बुराई पहुंचा सकते हैं, इसके बाद तुमको और तुम्हारे इन झूठे माबूदों को चैलेंज करता हूं कि अगर इनमें ऐसी कुदरत है तो वे मुझको नुक्सान पहुंचाने में जल्दी से कोई क़दम उठाएं। मैं अपने अल्लाह के फ़ल व करम से अक़्ल रखने वाला और सूझ-बूझ रखने वाला हूं। सोचने-समझने का मालिक हूं और हिक्मत और दानाई का हामिल, मैं तो सिर्फ अपने अल्लाह पर ही भरोसा करता हूं, और उसी पर पूरा व्यक्क्रीन रखता हूं जिसके कब्जे व कुदरत में कायनात के तमाम जानदारों की पेशानियां हैं, जो जिंदगी और मौत का मालिक है। वह ज़रूर मेरी मदद करेगा और हर नुक्सान पहुंचाने वाले के नुक्सान से बचाए रखेगा।
आख़िर हजरत हूद ने उसकी लगातार बग़ावत और सरकशी के खिलाफ यह ऐलान कर दिया कि अगर आद का यही रवैया रहा और हक़ से पलटने और मुंह फेरने की रविश में उन्होंने कोई तब्दीली न की और मेरी नसीहतों को पूरे दिल से न सुना, तो मैं अगरचे अपनी डाली ज़िम्मेदारियों के लिए हर वक़्त चुस्त और हिम्मत रखने वाला हूं, मगर उनके लिए हलाकत यक़ीनी है। अल्लाह बहुत जल्द उनको हलाक कर देगा और दूसरी क़ौम को जमीन का मालिक बनाकर उनकी जगह क़ायम कर देगा और बिला शुब्हा वे अल्लाह तआला को ज़र्रा बराबर भी नुक़सान नहीं पहुंचा सकते वह तो हर चीज पर कुदरत रखने वाला और हर चीज़ की हिफ़ाज़त करने वाला और निगहबान है। और पूरी कायनात उसकी कुदरत की मुट्ठी में है।
ऐ क़ौम ! अब भी समझ और अक़्ल व होश से काम ले नूह की क़ौम के हालात से इबरत हासिल कर और अल्लाह के पैग़ाम के सामने सरे नियाज झुका दे वरना क़ज़ा व क़द्र का हाथ जाहिर हो चुका है और बहुत क़रीब है वह जमाना कि तेरा यह सारा गुरूर व घमंड खाक में मिल जाएगा और उस वक़्त शर्मिंदगी से भी कोई फ़ायदा न होगा।
हजरत हूद ने बार-बार उनको भी यह बावर कराया कि मैं तुम्हारा दुश्मन नहीं हूं, दोस्त हूं। तुमसे सोना-चांदी और तख़्त व ताज की तलब नही करता हूं, बल्कि तुम्हारी फलाह व नजात चाहता हूं। मैं अल्लाह तआला के पैग़ाम के बारे में खियानत करने वाला नहीं बल्कि अमीन हूं। वही करता हूँ जो मुझसे कहा जाता है। जो कुछ कहता हूँ क्रीम की सआदत और हाल व माल की भलाई के लिए कहता हूं, बल्कि दायमी व सरमदी नजात के लिए कहता हूं।
तुमको अपनी ही क़ौम के एक इंसान पर अल्लाह के पैग़ाम नाज़िल होने से अचम्भा नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह पुराने जमाने से अल्लाह की जारी व सारी सुन्नत है कि इंसानों की हिदायत व सआदत के लिए उन्हीं में से एक आदमी को चुन लेता और अपना रसूल बना कर उसको ख़िताब करता है और अपनी मर्जी और नामर्जी से उसकी मारफ़त अपने बन्दों को मुत्तला करता रहता है और फ़ितरत का तकाजा भी तो यही है कि किसी क़ौम की रुश्द व हिदायत के लिए ऐसे आदमी ही को चुना जाए, जो बोल-चाल में उन्हीं की तरह हो, उनके अख़लाक़ और आदतों का जानकार हो, उनकी खुसूसी बातों से आश्ना और उन्हीं के साथ जिंदगी गुजारता रहा हो कि उसी से क़ौम मानूस हो सकती है और वही उसका सही हादी व मुश्फ़िक़ बन सकता है।
आद ने जब यह सुना तो वे अजीब हैरत में पड़ गए। उनकी समझ में न आया कि एक अल्लाह की इबादत का मतलब क्या है? वे ग़म व गुस्सा में आ गए कि किस तरह हम बाप-दादा की 'अस्नाम परस्ती' (मूर्तिपूजा) को छोड़ दें? यह तो हमारी और हमारे बाप दाद की सख़्त तौहीन है। उनका ग़ैज़ व ग़जब भड़क उठा कि उनको काफ़िर और मुश्रिक क्यों कहा जाता है? जबकि वे बुतों को अल्लाह के समान अपनी शफाअत करने वाला मानते हैं? उनके नज़दीक हूद की बात मान लेने में उनके माबूदों और बुजुर्गों की तौहीन थी और उन्हें हक़ीर समझा जा रहा था, जिनको वह बड़े ख़ुदा के दरबार में अपना वसीला और शफ़ी मानते थे और इसी को इन तस्वीरों और मूर्तियों के लिए पूजते थे कि वे खुश होकर हमारी सिफ़ारिश करेंगे और अल्लाह के अज़ाब से नजात दिलाएंगे। आख़िर वे शोले की तरह भड़क उठे और हज़रत हृद से बिगड़ कर कहने लगे, तूने हमको अपने ख़ुदा के अज़ाब की धमकी दी और हमको उससे यह कहकर डराया कि-
तर्जुमा-'मैं तुम्हारे ऊपर बड़े दिन के अजाब के आने से डरता हूं (कि कहीं) तुम उसके हकदार न ठहर जाओ।'
(अश-शोअरा 26: 135)
तो ऐ हूद। अब हमसे तेरी रोज-रोज की नसीहतें सुनी नहीं जातीं। हम ऐसी नसीहत करने वाले मेहरबान से बाज आए, अगर तू वाक़ई अपने क़ौल में सच्चा है तो वह अजाब जल्द ले आ कि हमारा-तेरा क़िस्सा साफ हो।
तर्जुमा-'पस ला तू हमारे पास उस चीज़ को, जिसका तू हमसे वायदा करता है, अगर तू वाक़ई सच्चों में से है।
'अल-आराफ 7: 70)
हजरत हूद ने जवाब दिया कि अगर मेरे खुलूस और मेरी सच्चाई वाली नसीहतों का यही जवाब है तो 'बिस्मिल्लाह' और तुमको अजाब का अगर इतना की शौक़ है, तो वह भी कुछ दूर नहीं। तर्जुमा-'बिला शुबहा तुम्हारे पालनहार की ओर से तुम पर अजाब व ग़ज़ब आ पहुंचा।(अल-आराफ़ 7: 71)
तुमको शर्म नहीं औती कि तुम खुद अपने गढ़े हुए बुतों को उनके नाम गढ़ कर पुकारते हो और तुम्हारे बाप-दादा उनको अल्लाह की दी हुई दलील के बगैर मनगढ़त तरीक़े पर उनको अपना शफ़ीज़ और सिफ़ारिशी मानते हैं और तुम मेरी रोशन दलीलों से मुंह फेर कर और सरकशी करके अज़ाब के तलबगार होते हो, अगर ऐसा शौक़ है तो अब तुम भी इन्तिजार करो और मैं भी इंतिजार करता हूं कि वक़्त क़रीब आ पहुंचा।
तर्जुमा-'क्या तुम मुझसे उन मनगढ़त नामों (बुतों) के बारे में झगड़ते हो, जिनको तुमने और तुम्हारे बाप-दादों ने गढ़ लिया है कि जिसके बारे में तुम्हारे पास खुदा की कोई हुज्जत नहीं। पस अब तुम (अल्लाह के अज़ाब का) इन्तिजार करो। मैं भी तुम्हारे साथ इन्तिजार करता हूं। (अल-आराफ़ 771)
हूद की क़ौम पर अज़ाब
हासिल यह कि हूद की क़ौम (आद) इंतिहाई शरारत व बग़ावत और अपने पैग़म्बर की तालीम से बेपनाह बुग्ज़ और दुश्मनी की वजह से अमल के बदले और जज़ा के क़ानून का वक़्त आ पहुंचा और ग़ैरते हक़ हरकत में आई और अल्लाह के अज़ाब ने सबसे खुश्कसाली की शक्ल अख्तियार की। आद सख़्त घबराए हुए परेशान हुए और तंग दिखाई पड़ने लगे, तो हजरत हूदا
को हमदर्दी के जोश ने उकसाया और मायूसी के बाद फिर उनको एक बार समझाया कि हक़ का रास्ता आख़्तियार कर लो, मेरी नसीहतों पर ईमान ले आओ, यही निजात की राह है दुनिया में भी और आख़िरत में भी, वरना पछताओगे। लेकिन बदबख़्त व बदनसीब क़ौम पर कोई असर न हुआ बल्कि दुश्मनी कई गुना ज्यादा बढ़ गई, तब हौलानाक अज़ाब ने उन को आ घेरा। आठ दिन और सात रातें बराबर तेज्ञ व तुंद हवा के तूफ़ान उठे और उनको और उनकी आबादी को तह व बाला करके रख दिया। तनोमंद और हैकल इंसान जो अपनी जिस्मानी ताक़तों के घमंड में सरमस्त और सरकश बने हुए थे, इस तरह बेहिस व हरकत पड़े नज़र आते थे, जिस तरह आंधी से भारी-भरकम पेड़ बेजान होकर गिरता है। ग़रज़ उनकी हस्ती को नेस्त व नाबूद कर दिया गया, ताकि आने वाली नस्लों के लिए इबरत बनें और दुनिया और आख़िरत की लानत और अज़ाब उन पर मुसल्लत कर दिया गया कि वे उसी के हक़दार थे। हजरत हूद और उनके मुख़िलस इस्लाम को मानने वाले साथी अल्लाह की रहमत और नेमत में अल्लाह के अज़ाब से महफूज़ रहे और सरकश क़ौम की सरकशी और बग़ावत से बचे रहे।
यह है आदे ऊला की वह दास्तान जो अपने अन्दर इबरत के सामान रखती है। इसमें अनगिनत नसीहतें पाई जाती हैं और अल्लाह तआला के हुक्मों की तामील और तक़्वा व तहारत की जिदंगी की तरफ़ दावत देती है। शरारत, सरकशी और अल्लाह के हुक्मों से बगावत के बुरे अंजाम से आगाह करती और वक़्ती खुशऐशी पर घमंड करके नतीजे की बदबख़्ती पर मज़ाक़ उड़ाने से डराती और बाज़ रखती है।
हज़रत हूद की वफ़ात
हज़रत अली से एक असर नक़ल किया जाता हैं कि उनकी क़ब्र हज़र मौत में कसीफ़े अहमर (लाल टीला) पर है और उसके सरहाने झाऊ का पेड़ खड़ा है। दूसरी रिवायतों के मुक़ाबले में यही रिवायत सही और माकूल मालूम होती है कि आद की बस्तियां हज़र मौत के क़रीब थीं और उनकी (आद की) तबाही के बाद क़रीब ही की बस्तियों में हज़रत हूद ने क्रियाम फ़रमाया होगा और वहीं वफ़ात हो गई होगी
अल्लाह के नेक बन्दे जब किसी का भला चाहते और टेड़ों की टेढ़ को सीधा करने के लिए नसीहत फ़रमाते, तो बुरों और जलीलों की कमीनगी, मजाक उड़ाने, फब्ती कसने, छोटा बनाए रखने की परवाह नहीं करते। दुखी और रंजीदा होकर या नाराज होकर भला चाहने और नसीहत करने को नहीं छोड़ते और इन तमाम खुसूसियतों में नुमायां बात यह होती है कि वे अपनी इसी नसीहत और भला चाहने के लिए क्रौम से किसी नफ़ा की उम्मीद या ख्वाहिश जरा-सी नहीं रखते। उनकी जिंदगी बदला और एवज से पूरी तरह बुलन्द और बरतर होती है।
अपने इस्लाह चाहने वालों और नबियों और सच्चों के ख़िलाफ़ क़ौमों की वैर और दुश्मनी इसी एक अक़ीदे पर टिक रही है कि हमारे बाप-दादा की रीति व रस्म और उनकी खुद की गढ़ी हुई मूर्तियों के ख़िलाफ़ क्यों कुछ कहा जाता है? ये बातें क्रौमों की जिंदगी के लिए हमेशा तबाही मचाने वाली और उनकी फ़लाह व अबदी सआदत के लिए हलाक करने वाली हैं।
तब्लीग़ व हक़ के पैग़ाम के रास्ते में बदी का बदला नेकी से दिया जाए और कड़वाहट का जवाब मीठे बोल से पूरा किया जाए। (अलबत्ता तब्लीग करने वाले) अपनी बदकिरदारी और लगातार सरकशी पर अल्लाह तआला के बनाए हुए क़ानून 'जज़ा-ए-अमल' या 'पादाशे अमल' को जरूर याद दिलाएं और आने वाले बुरे अंजाम पर यक़ीनन तंबीह करें और यह सच्चाई बार-बार सामने लाएं कि जब कोई क़ौम इज्तिमाई सरकशी, जुल्म और बगावत पर तैयार हो जाती है और उस पर बराबर इसरार करती रहती है, तो फिर अल्लाह तआला का क़ह व ग़ज़ब उसको सफ्हा-ए-आलम से मिटा देता है और उसकी जगह दूसरी क़ौम ले लेती है।
हज़रत हूद और आद क़ौम का ज़िक्र कुरआन में सूरः आराफ़, हूद और शुभ्रा में आया है जबकि आद क़ौम का जिक्र आराफ़, हूद, मोमिनून, शुञ्ज, फुस्स्लित, अहक्राफ़, अज्ज़ारियात, अल-क़मर और अल-हाक़्क़ा में हुआ है।
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