जिस्मानी सेहत

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      बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

जिस्मानी सेहत

पदार्थ/इलाज फायदे
निकाह करना
  • इंसानी जिस्म खून के फसाद और फोड़े-फुन्सियों से महफूज़ रहता है।
रोज़ा रखना
  • रतूबत की अधिकता नहीं होती और बलगमी रोगों से नजात मिलती है।
रोज़े का मसनून तरीका
  • हफ्ते में दो रोज़े (शनिवार, जुमरात) और हर महीने में तीन रोज़े रखने से रतूबत नियंत्रित रहती है।
दुल्हन को लाना
  • दुआ पढ़ने से अल्लाह दुल्हन की बुराई दूर करता है।
मुबाशरत के समय दुआ
  • शैतान से हिफाज़त के लिए दुआ पढ़ने से बरकत होती है।
मुबाशरत का सही समय
  • रात के आखिरी भाग में मुबाशरत करना सबसे बेहतर है।
बातचीत करना
  • मुबाशरत के समय ज्यादा बातें न करने से गूंगे बच्चे की संभावना कम होती है।
बिना गुस्ल मुबाशरत
  • बिना गुस्ल के मुबाशरत से बच्चे में कंजूसी या दीवानेपन का खतरा रहता है।
खड़े होकर मुबाशरत करना
  • खड़े होकर मुबाशरत करने से बदन कमजोर होता है।
मुबाशरत के बाद पेशाब करना
  • पेशाब करने से लाइलाज रोगों से बचाव होता है।
मुबाशरत के बाद अंग को धोना
  • अंग धोने से स्वास्थ्य बना रहता है, लेकिन ठंडे पानी से न धोएं।
बच्चे की पैदाइश की तकलीफ
  • तावीज़ बांधने से बच्चा आसानी से पैदा होता है।

इन उपायों का पालन करके आप अपनी और अपने परिवार की सेहत को बेहतर बना सकते हैं।


जिस्मानी सेहत💪

इलाज - सही बुखारी में हज़रत उबादह रजि० से रिवायत है- "नबी करीम सल्ल० ने फरमाया कि मैं औरतों से निकाह करता हूं और जो आदमी मेरे तरीके से इन्कार करे वह हम में से नहीं" और सुनने अबू दाऊद व नसाई व हाकिम में माक़िल बिन यसार से रिवायत है नबी सल्ल० ने इर्शाद फरमाया कि ऐसी औरतों से निकाह करो जो अपने पतियों से मुहब्बत और अधिक बच्चे पैदा करने वाली हों क्योंकि मैं तुम्हारी कसरत (अधिक आबादी) की वजह से दूसरी उम्मतों पर गर्व करूंगा।

जिस्मानी सेहत









और सही बुखारी व मुस्लिम में हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि० से रिवायत है-"नबी करीम सल्ल० का इर्शाद है कि ऐ जवानों के गिरोह ! तुम में जो निकाह की ताकत रखे उसे निकाह करना चाहिए इसलिए कि निकाह आंख को ढांकने वाला और शर्मगाह को रोकने वाला है और जो निकाह की ताकत न रखे उसको रोज़ा रखना चाहिए इसलिए कि रोज़ा मानो खस्सी कर देता है।"


फायदा - हदीस शरीफ में दो इलाज बताए गए हैं। एक तो निकाह करना, दूसरे रोज़ा रखना। इसलिए कि निकाह करने से इन्सानी जिस्म खून के फसाद और फोड़े-फुन्सियों से महफूज रहेगा लेकिन साथ ही मुबाशरत की अधिकता से परहेज़ भी आवश्यक है क्योंकि इससे इन्सानी जिस्म कमज़ोर हो जाता है और तरह-तरह की बीमारियां लग जाती हैं।


और यदि गरीबी के कारण शादी न कर सकता हो तो रोज़ा रखना चाहिए क्योंकि रोज़ा रखने से रतूबत की अधिकता नहीं होती और बलगमी रोगों से नजात मिल जाती है लेकिन इस बात का ध्यान रहे कि रोज़े सुन्नत तरीके से रखा करें क्योंकि कभी-कभी रोज़े की अधिकता से रतूबते असली खुश्क हो जाती है। इस प्रकार सौदावी मिज़ाज बन जाता है।


रोज़ा रखने का मसनून तरीका

रोज़े का मसनून तरीका यह है कि हफ्ते में दो रोज़े रखो। एक शनिवार को दूसरा जुमरात को इसलिए कि इसका हुक्म मुस्लिम, अबू दाऊद निर्मिज़ी में अनेक बार आया है और हर महीने में तीन रोज़े रखे। इनको हुजूर सल्ल० ने कई तरीकों से रखा है। कभी तो तेरह, चौदह व पन्द्रह तारीख का रोज़ा रखा। कभी दिनों के हिसाब से एक महीने में इतवार पीर का रोज़ा रखा और दूसरे महीने में मंगल बुद्ध और जुमरात का रोज़ा रखा

अतएव जामेअ तिर्मिज़ी में हज़रत आइशा रजि० से एक हदीस नकल की है कि कभी दिनों व तारीख़ों, की कैद न फ्रमाते बल्कि

जिस तारीख में चाहते ये तीनों रोज़े रखा करते थे। और साल भर में मसनून तरीका यह है कि रमज़ान के महीने के पूरे रोज़े रखे और ईद के छः रोज़े और मुहर्रम के दो रोज़े और ज़िलहिज्जा के नौ रोज़े रख करे। जो आदमी इस मसनून तरीके से रोजे रखेगा उसकी रतूबत न तो ज़्यादा पैदा होगी और न ही पूरी तरह खुश्क ही होगी।जब नयी दुल्हन को घर में लाए तो


इलाज - जब दुल्हन को लाए तो उसका हाथ पकड़कर यह दुआ पढ़े :

अल्ला हुम्मम इन्नी असअलुक मिन खैरिहा व खैरी मा जबलतुहा व अऊजु बिक मिन शर्रि मा जब-लतुहु अलैह ।

"ऐ अल्लाह मैं इसकी बेहतरी और इसको ऐबों की बेहतरी का सवाल करता हूं और इसकी बुराई और इसके ऐबों की बुराई से पनाह चाहता हूं।"


फायदा - यह रिवायत अबू दाऊद और दूसरी किताबों में अम्र बिन औफ से नकल की गयी है। इस दुआ की बरकत यह है कि अल्लाह इस औरत की बुराई दूर कर देगा और उसके घर में इस औरत की नेकी फैला देगा और यदि कोई आदमी बान्दी व गुलाम का कोई जानवर खरीदे तो उसकी पेशानी को पकड़ कर भी यही दुआ पढ़े। मसनून तरीका यह है कि जब दुल्हन को घर में लाए तो उसके दोनों पांव धोकर पानी को घर के कोनों में छिड़क दे। इससे अल्लाह तआला घर में खैरव बरकत प्रदान करेगा।


मुबाशरत के समय शैतान से हिफाज़त

इलाज - जब मुबाशरत करना चाहे तो पहले यह दुआ पढ़ ले :

बिस्मिल्लाहि अल्लाहुम्मम जन्निबनश्शैताने व जन्निबनश्शैताना मा रज़क्त-न शुरू करता हूं अल्लाह के नाम से ऐ अल्लाह ! हमको शैतान से दूर रख और जो नेमत हमें तूने दी उससे शैतान को दूर रख।








मुबाशरत का सही समय

इलाज - फकीह अबुल्लैस ने अपनी किताब बुस्तान में लिखा है कि मुबाशरत के लिए सबसे बेहतर समय रात के आखिरी भाग का है क्योंकि पहले हिस्से में अमाश्य में खाना भरा होता है। मुबाशरत करते समय इस बात का ध्यान रहे कि मुंह किबले की ओर न हो।


मुबाशरत के उसूल

इलाज - मर्द व औरत को चाहिए कि सोहबत के समय नंगे न हों बल्कि चादर आदि ओढ़े रहें क्योंकि नबी सल्ल० ने प्रमाया है कि वहशी जानवरों की तरह नंगे न हों। फकीह अबुल्लैस ने अपनी किसाब बुस्तान में लिखा है कि नंगे होकर मुबाशरत करने से औलाद बेशर्म पैदा होती है।

हजरत अली रजि० फरमाते हैं कि एक आदीनी सल्ल के पास आया और शिकारीक मेरे घर में औलाद पैदा नहीं होती। नदी सत्व नेत्याकडे खाथा कर।" हजरत अबु हुदैनः रजिसे रिवाज है कि पत्री सत्ल० ने हज़रत जिवरील अलैए से अपनी की शिकायत की जिवरील अले० ने कहा कि आप हरीसा खाया करें क्योंकि इसमें चालीस पदों की ताकत है।

हजरत अनस रजि० फरमाते हैं कि नदी सल्ल० का इर्शाद है कि तुभ मेहदी का खिताब लगाया करो। क्योंकि भेहदी मर्दाना ताकत पैदा करती है और हुजेल बिन हक कहते हैं कि नबी सल्ल० का इशांद है कि बदन से बालों को जल्द साफ करना मर्दाना ताकत को बढ़ाता है। (गायतुल अहकाम)


मुबाशरत के समय बातें करना

इलाज - फकीह अबुल्लैस ने बुस्तान में लिखा है कि मुबाशरत के समय ज्यादा बातें न की जाएं क्योंकि खतरा है कि लड़का गूंगा न पैदा हो।


बिना गुस्ल मुबाशरत का नुकसान

यदि किसी आदमी को एहतलाम हुआ हो और वह बिना गुस्ल किए अपनी पत्नी से मुबाशरत करे तो इस बात का खतरा है कि लड़का कन्जूस या दीवाना न हो जाए। इसलिए ऐसी बातों बचना चाहिए। यह इलाज साहिबे एहयाउल उलूम ने बुस्तान में लिखा है।


खड़े होकर मुबाशरत करना

इलाज- साहिबे कुनियः ने लिखा है कि खड़े होकर मुबाशरत करना ठीक नहीं है। इससे बदन कमज़ोर व दुर्बल हो जाता है और पेट भरा होने पर मुबाशरत नहीं करनी चाहिए ऐसा करने से सन्तान बेवकूफ व कम अक़्ल पैदा होती है।


महीने के बीच में मुबाशरत करना

इलाज - अबू नईम ने किताबुत्तिब्ब में लिखा है कि नबी सल्ल० ने हज़रत अली रजि० से फरमाया कि ऐ अली ! आधे महीने में अपनी पत्नी के साथ मुबाशरत न किया करो क्योंकि इस तशीख़ में शैतान आया करते हैं।


मुबाशरत के बाद पेशाब करना

इलाज - साहिबे शरअतुल इस्लाम में लिखा है कि मुबाशरत के बाद पेशाब अवश्य कर लेना चाहिए। नहीं तो किसी लाइलाज रोग का शिकार हो जाने का डर है।


मुबाशरत के बाद अंग (लिंग) को धोना🚰

इलाज - फकीह अबुल्लैस ने लिखा है कि सोहबत व मुबाशरत

के बाद अपने लिंग को धो लेना चाहिए। इससे बदन स्वस्थ रहता है लेकिन मुबाशरत के तुरन्त बाद ठंढे पानी से न धोएं क्योंकि इस तरह बुखार होने का खतरा रहता है।


मुबाशरत के बाद अंग (लिंग) को धोना










मुबाशरत के समय औरत की शर्मगाह देखना

इलाज - साहिबे शरअतुल इस्लाम ने लिखा है कि मुबाशरत के समय औरत की शर्मगाह को न देखे क्योंकि इससे यह ख़तरा लगा रहता है कि कहीं औलाद अंधी न पैदा हो।


बच्चे की पैदाइश की तकलीफ व उसका।

इलाज - फ्तावा हुज्जत में लिखा है कि यदि किसी औरत को बच्चा होने के समय मुश्किल या तकलीफ़ हो तो यह तावीज़ लिख कर और सफेद कपड़े में लपेट कर औरत की बायीं रान पर बांध दिया जाए। इंशाअल्लाह बच्चा बड़ी आसानी व बिना किसी तकलीफ के पैदा होगा। तावीज़ यह है :


बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम० व अलक्त मा फीहा व त-खल्लत वअज़िनत लिरब्बिहा व हुक्कत। अहयन अशरा हिय्यन०

"शुरू अल्लाह के नाम से जो मेहरबान और रहम करने वाला है और जब जमीन निकाल फेंकेगी जो उसमें है और खाली हो जाएगी और अपने रब का हुकुम सुनेगी। वह इसी योग्य है 


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