आज की इस पोस्ट में हम हजरत नूह के बारे में जानेंगे की हजरत नूह कोन से नबी है। हज़रत नूह का वाकिया
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हज़रत नूह का वाकिया.pixaby.com |
हज़रत नूह पहले रसूल हैं
हजरत आदम के बाद यह पहले नबी हैं जिनको रिसालत जता गई। सहीह मुस्लिम बाबे शफाअत में हजरत अबू हुरैरह से एक रिवाय में यह आया है कि- 'ऐ नूह! तू जमीन पर सबसे पहला रसूल बनाया गया।'
नूह की क़ौम, दावत व तब्लीग़ और क़ौम की नाफ़रमानी
हजरत नूह के नबी बनाए जाने से पहले तमाम क़ौम अल्लाह तौहीद और सही मजहबी रोशनी से पूरी तरह अनजान बन चुकी थी औ हक़ीक़ी माबूद की जगह खुद के गढ़े हुए बुतों ने ले ली थी। गैरुल्लाह औ बुतों की पूजा उनका शिआर था। आखिर अल्लाह की सुन्नत के मुताबि उनके रुश्द व हिदायत के लिए भी उन ही में से एक हादी और अल्लाह सच्चे रसूल नूह को मब्ऊस किया गया। हजरत नूह ने अपनी कौन को राहे हक़ की तरफ पुकारा और सच्चे मजहब की दावत दी लेकिन क्रौ नै न माना और नफ़रत व हक़ारत के साथ इंकार पर इसरार किया। क़ौम अमीरों और सरदारों ने उनके झुठलाने और उन्हें जलील करने का कोई पहल न छोड़ा और उनके (अमीरों और सरदारों के मानने वालों ने उन्हीं की तकली और पैरवी के सबूत में हर क़िस्म के तजलील व तौहीन के तरीक़ों को हजर नूह पर आजमाया। उन्होंने इस बात पर ताज्जुब जाहिर किया कि जिसको न हम पर धन-दौलत में बरतरी हासिल है और न वह इंसानियत के रुत्बे से बुलन्द 'फ़रिश्ता हैकल' है, उसको क्या हक़ है कि वह हमारा पेशव बने और हम उसके हुक्मों को मानें?वे क़ौम के गरीब और कमज़ोर लागों को जब हज़रत नूह के पीछे चलने वाले और पैरवी करने वाले देखते तो घमंड भरे अन्दाज़ में जलील समझकर कहते, 'हम इनकी तरह हैं कि तेरे फ़रमान पर चलने लगें और तुझको अपना सरदार मान लें कि जिसकी पैरवी की जाए।' वे समझते थे कि कमज़ोर और पस्त लोग नूह के अंधे मुकल्लिद हैं, न इनके पास कोई समझ है कि हमारी तरह अपनी जांची, परखी राय से काम लेते और न इतना शऊर है कि हकीकते हाल को समझ लेते और अगर वे हज़रत नूह की बात की तरफ कभी तवज्जोह भी देते, तो उनसे इसरार करते कि पहले इन क़ौम के पस्त और ग़रीब लोगों को अपने पास से निकाल दे, तब हम तेरी बात सुनेंगे, क्योंकि हमको इनसे घिन आती है और हम और ये एक जगह नहीं बैठ सकते। हज़रत नूह इसका एक ही जवाब देते कि ऐसा कभी न होगा, क्योंकि ये अल्लाह के मुख़्लिस बन्दे हैं अगर मैं इनके साथ ऐसा मामला करूं जिसकी तुम ख़्वाहिश रखते हो, तो अल्लाह के अज़ाब से मेरे लिए कोई पनागाह नहीं है। मैं उसके दर्दनाक अज़ाब से डरता हूं। उसके यहां इख़्लास की क़द्र है। अमीर व ग़रीब का वहां कोई सवाल नहीं है। साथ ही इर्शाद फ़रमाते कि मैं तुम्हारे पास अल्लाह की हिदायत का पैग़ाम लेकर आया हूं, न मैं ने गैबदानी का दावा किया है और न फ़रिश्ता होने का। अल्लाह का बरगज़ीदा पैग़म्बर और रसूल हूं और दावत व इर्शाद मेरा मक्सद और नस्खुलऐन है। उसको सरमायादाराना बुलन्दी, गैबदानी या फ़रिश्ता हैकल होने से क्या वास्ता? क़ौम के ये कमज़ोर और ग़रीब लोग, जो अल्लाह पर सच्चे दिल से ईमान लाए हैं, तुम्हारी निगाह में इसलिए हक़ीर व जलील हैं कि वे तुम्हारी तरह धन-दौलत वाले नहीं हैं और इसीलिए तुम्हारे ख़्याल में ये न खैर हासिल कर सकते हैं और न संआदत, क्योंकि ये दोनों चीजें दौलत व हश्मत के साथ हैं, न कि ग़रीबी और इफ़्लास के साथ।सो वाजेह रहे कि अल्लाह की सआदत व खैर का क़ानून जाहिरी दौलत व हश्मत के ताबे नहीं है और न उसके यहां सआदत और हिदायत का हासिल करना और पाना सरमाए की रौनक़ के असर में है, बल्कि इसके ख़िलाफ़ नफ़्स का इत्मीनान, अल्लाह की रिज़ा, क़ल्ब का ग़िना और नीयत व अमल के इखलास पर मौक़ूफ़ है।
हजरत नूह ने यह भी बार-बार तंबीह की कि मुझे अपनी दावत पहुंचाने में और हिदायत के रास्ते पर लगाने में न तुम्हारे माल की ख़्वाहिश है, न जाह व मंसब की, मैं उजरत का तलबगार भी नहीं हूं। इस खिलाफत का हकीकी अज्ञ व सवाब अल्लाह तआला के हाथ में है और वही बेहतरीन क़द्र करने वाला है।बहरहाल हजरत नूह ने इतिहाई कोशिश की कि बदबख़्त कोम
समझ जाए और अल्लाह की रहमतों की पनाह में आ जाए, मगर क़ौम ने न माना और जितना इस ओर से हक़ की तब्लीग में जद्दोजेहद हुई, उसी क़दर क़ौम की ओर से बुज़ और दुश्मनी में सरगर्मी जाहिर की गई और तकलीफ़ पहुंचाने और चोट देने के तमाम तरीक़ों का इस्तेमाल किया गया और उनके बड़ों ने आम लोगों से साफ़-साफ़ कह दिया कि तुम किसी तरह वुद्द, सुवा, यगूस और नत्र जैसे बुतों की पूजा को न छोड़ो और आख़िर में तंग आकर कहने लगे- 'ऐ नूह ! तूने हमसे झगड़ा किया और बहुत झगड़ा किया, अब उसको ख़त्म कर और जो तूने हमसे (अल्लाह के अजाब) का वायदा किया है, वह ले आ।'हज़रत नूह ने यह सुनकर जवाब दिया-'नूह ने कहा, ज़रूर, अगर अल्लाह चाहेगा तो उस अज़ाब को भी ले आएगा और तुम उसको थका देने वाले नहीं हो।' (हूद 11: 33)
इस तरह जब क़ौम की हिदायत से पहले हजरत नूह बिल्कुल मायूस हो गए और उसकी बातिलपरस्ती, जिद्द और हठधर्मी उन पर वाजेह हो गई और कुरआन के मुताबिक़ साढ़े नौ सौ साल तक बराबर की जा रही दावत व तब्लीग़ का उन पर कोई असर नहीं देखा गया तो बहुत ज़्यादा मलूल और परेशान-ख़ातिर हुए, तब अल्लाह तआला ने उनको तसल्ली के लिए फ़रमाया- 'और नूह पर वह्य की गई कि जो ईमान ले आए, वह ले आए, अब इनमें से कोई ईमान लाने वाला नहीं है, पस उनकी हरकतों पर ग़म न कर।'
(हूद 11 : 36) तब हजरत नूरु को यह मालूम हो गया कि उनके हक़ पहुंचाने में कोताही नहीं है, बल्कि खुद न मानने वालों की इस्तेदाद का क़सूर है और उनकी सरकशी का नतीजा। तब उन के आमाल और हरकतों का असर कुबूल करके अल्लाह तआला की दरगाह में यह दुआ फ़रमाई- 'ऐ परवरदिगार! तू काफ़िरों में से किसी को भी जमीन में बाक़ी न छोड़। अगर तू उनको यों ही छोड़ देगा तो ये तेरे बन्दों को भी गुमराह करेंगे और उनकी नस्ल भी उन्हीं की तरह नाफ़रमान पैदा होगी।'
नाव की बुनियाद
अल्लाह ने हज़रत नूह की दुआ कुबूल फ़रमाई और बदले के क़ानून और आमाल के मुताबिक़ सरकशों की सरकशी और मुतमरिंदों के तमरुंद का एलान कर दिया और पेशगी ही कोई मस्अला न बने, पहले हज़रत नूह को हिदायत फ़रमाई कि वह एक नाव तैयार करें, ताकि जाहिरी अस्बाब के एतबार से वह और पक्के मोमिन उस अज़ाब से बचे रहें, जो अल्लाह के नाफ़रमानों पर नाज़िल होने वाला है।
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हज़रत नूह ने जब नाव बनानी शुरू की, तो कुफ़्फ़ार ने हँसी उड़ाना और मज़ाक़ बनाना शुरू कर दिया और जब कभी उधर से उनका गुज़र होता तो कहते कि 'खूब ! जब हम डूबने लगें तो तुम और तुम्हारे पीछे चलने वाले इस नाव में महफूज़ रहकर नजात पा जाएंगे। कैसा मूर्खता वाला ख़्याल है?' हज़रत नूह भी उनको अंजामेकार से ग़फ़लत और अल्लाह की नाफ़रमानी पर जुरात देखकर उन ही के ढंग से जवाब देते और अपने काम में लगे रहते, क्योंकि अल्लाह तआला ने पहले ही उनकी हक़ीक़ते हाल को बता दिया था।'ऐ नूह! तू हमारी हिफ़ाज़त में हमारी वय के मुताबिक़ नाव तैयार किए जा और अब मुझसे उनसे मुताल्लिन कुछ सवाल न हो। ये बेशक डूबने वाले हैं।'
(हूद 11: 37) आख़िर नूह की नाव बनकर तैयार हो गई अब अल्लाह के वायदे (अजाब) का वक़्त क़रीब आया, और हज़रत नूह ने उनकी पहली निशानी को देखा, जिसका जिक्र उनसे किया गया था, यानी धरती के नीचे से पानी का चश्मा उबलना शुरू हुआ, तब अल्लाह की वश्य ने उनको हुक्म सुनाया कि नाव में अपने खानदान वालों को बैठने का हक्म दो और तमाम जानदारों में से हर एक का एक जोडा नाव में पनाह ले और छोटी जमाजत (लगभग चालीस लोग) भी, जो तुम पर ईमान ला चुकी है, नाव में सवार हो जाए। जब अल्लाह की वह्य की तामील की गई तो अब आसमान को हुक्म हुआ कि पानी बरसना शुरू हो और धरती के सोतों को हुक्म दिया गया कि वे पूरी तरह उबल पड़ें। अल्लाह के हुक्म से जब यह सब कुछ होता रहा, तो नाव भी उसकी हिफ़ाज़त में पानी पर एक मुद्दत तक तैरती रही, यहां तक कि तमाम इंकार करने वाले और दुश्मन डूब गए और अल्लाह तआला के क़ानून 'जजा व आमाल' के मुताबिक़ अपने किए को पहुंच गए।
जूदी पहाड़ (अज़ाब का ख़त्म होना)
गरज जब अल्लाह के हुक्म से अज़ाब ख़त्म हुआ तो नूह की नाव जूदी पर ठहर गई-
तर्जुमा - 'और हुक्म पूरा हुआ और नाव जूदी पर जा ठहरी और एलान कर दिया गया कि जुल्म करने वाली क़ौम के लिए हलाकत है।' (हृद 44)
पानी धीरे-धीरे सूखना शुरू हो गया और नाव में पनाह लेने वालों ने दूसरी बार अम्न व सलामती के साथ अल्लाह की धरती पर क़दम रखा। इसी वजह से हज़रत नूह का लक़ब 'अबुल बशर सानी' या 'आदमे सानी' (यानी इंसानों का दूसरा बाप) और शायद इसी एतबार से हदीस में उनको 'अव्वलुरुसुल' कहा गया। (जिस इंसान पर अल्लाह की वह्य नाजिल होती है, वह 'नबी' और जिसको नई शरीअत भी अता की गई हो, वह 'रसूल' है। रसूल नबी भी होता है, मगर नबी का रसूल होना जरूरी नहीं।) जहां तक जूदी पहाड़ की जगह का ताल्लुक़ है, तो कुरआन ने सिर्फ उस जगह का तरिकर किया है, जहां नाव जाकर ठहरी थी अलबत्ता तौरात की शरह लिखने वालों का ख़्याल है कि जूदी पहाड़ के उस सिलसिले का नाम है जो अरारात और जॉर्जिया के पहाड़ी सिलसिले को आपस में मिलाता है।की सजा या जज़ा इसी दुनिया में मिल जाए, क्योंकि यह कायनात अमन की खेती है, किरदार के बदले के लिए मञ्जद और आखिरत की दुनिया को खास किया गया है, फिर भी जुल्म और घमंड इन दो बदआमालियों की सजा किय न किसी अन्दाज़ से यहां दुनिया में भी जरूर मिलती है।
क़ौल
इमाम अबू हनीफ़ा रह० फ़रमाया करते थे कि जालिम और घमंडी अपनी मौत से पहले ही अपने जुल्म और किब्र की कुछ न कुछ सजा जरूर पाता है और जिल्लत और नामुरादी का मुंह देखता है। चुनांचे अल्लाह के सच्चे पैग़म्बरों से उलझने वाली क़ौमों और तारीख की जालिम और घमंडी हस्तियों की इबरतनाक हलाकत और बरबादी की दास्तानें इस दावे की बेहतरीन दलील हैं।
नूह के तूफ़ान से मुताल्लिक़ कुछ अहम बातें
नूह का बेटा
तारीख़ के माहिरों ने हज़रत नूह के इस बेटे का नाम कनआन बताया है, यह तौरात की रिवायत के मुताबिक़ है। कुरआन उसका नाम बताने से ख़ामोश है, जो नफ़्से वाक्रिया के लिए गैर जरूरी था अलबत्ता हजरत नूह का उस बेटे से ख़िताब और उसके जवाब का जिक्र किया गया है-
तर्जुमा- 'कहा, मैं बहुत जल्द किसी पहाड़ की पनाह लेता हूं कि वह मुझको डूबने से बचा लेगा।' (-43)
लेकिन कुछ उलेमा ने हज़रत नूह के इस बेटे के मुताल्लिक यह कहा है कि यह सगा बेटा न था और फिर इस बारे में दो अलग-अलग दावे किए हैं। एक जमाअत कहती है कि वह 'रबीब' था (यानी हजरत नूह की बीवी के पहले शौहर का लड़का था) जो हज़रत नूह गोद में पला था और दूसरी जमाअत हज़रत नूह से निकाह के बाद उनकी की काफिर बीवी पर अस्मत व आबरू में खियानत का इलज़ाम लगाती है। इन उलमा को इन गैर सनद याफ्ता और दूर की कौड़ी लाने की जरूरत इसलिए पेश आई कि इनके ख्याल में पैग़म्बर का बेटा काफ़िर हो, यह बहुत दूर की बात और अजीब मालूम होती है जबकि हक़ीक़त यह है कि नबी और पैग़म्बर का काम फ़क़त रुश्द व हिदायत का पैगाम पहुंचाना है। औलाद, वीवी, खानदान, क़बीला और क़ौम पर उसको जबरदस्ती चस्पां करना और उनके दिलों को पलट देना नहीं है। अल्लाह तआला फ़रमाता है-
'तू उन (काफ़िरों पर) मुसल्लत नहीं किया गया।'(अल-ग़ाशिया 28: 32)
'और तू उनको हक़ के कुबूल करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता।'(क्राफ़ 55: 45)बहरहाल सही यही है कि कनआन हज़रत नूह का बेटा था, मगर उस पर हजरत नूह की हिदायत व रुश्द की जगह अपनी काफ़िर वालिदा की तर्वियत की गोद ने और ख़ानदान और क़ौम के माहौल ने बुरा असर डाला और वह नबी का बेटा होने के बावजूद काफ़िर ही रहा। असल में- पिसरे नूह बाबदां नशिस्त खानदाने बनू तश गुम शद !
नूह का तूफ़ान आम था या ख़ास
क्या नूह का तूफ़ान पूरी दुनिया में आया था या किसी ख़ास खित्ते पर, इसके बारे में पुराने और नए उलेमा में हमेशा से दो राएं रही हैं। यही सूरत यहूदी और ईसाई उलेमा, फ़लकियात के इल्म के और तबक़ातुल-अर्ज के माहिरों की है। एक तबक्ने का ख़्याल है कि यह सिर्फ़ उसी खित्ते में महदूद था, जहां हजरत नूह की क़ौम आबाद थी और यह हलका फैलाव के एतबार से एक लाख चालीस हजार मुरब्बा किलो मीटर होता है, लेकिन सही मस्लक यही है कि तूफ़ान ख़ास था, आम न था, अलबत्ता कुरआन मजीद ने अल्लाह की सुन्नत के मुताबिक़ सिर्फ़ उन्हीं तफ्सीलों पर तवज्जोह की है, जो नसीहत के लिए और सबक हासिल करने के लिए जरूरी थीं। वह तो सिर्फ़ यह बताना चाहता है कि तारीख का यह वाकिया सोचने-समझने वालों को मुलाना न चाहिए कि हजारों साल पहले एक कौम ने अल्लाह की नाफ़रमानी
क्रससुल अविया पर इसरार किया और उसके भेजे हुए हादी हजरत नूह कु के रायकव हिदायत के पैग़ाम को झुठलाया, ठुकराया और मानने से इन्कार कर दिया, अल्लाह ने अपनी कुदरत का मुजहारा किया और ऐसे सरकशों और मुतमरिंदों को हवा-बारिश के तूफान में ग़र्क कर दिया और इसी हालत में हजरत नूह 3 और थोड़े से लोगों की ईमानदार जमाअत को महफूर 'इन-न फ्री जालि-क ल-इबरतल्लि उलिलअलवाव"
हज़रत नूह की उम्र
कुरआन मजीद ने साफ कहा है कि हजरत नूह ने अपनी क्रीम में साढ़े नौ सौ साल तब्लीग व दावत का फ़र्ज अंजाम दिया।
तर्जुमा "और बिला शुबहा हमने नूह को उसकी कौम की तरफ रसूल बनाकर भेजा, पस वह रहा उनमें पचास कम एक हजार साल।"
यह उम्र मौजूदा तबई उम्र के एतवार से अवल से परे मालूम होती है, लेकिन मुहाल और नामुम्किन नहीं है, इसलिए कि कायनात के शुरू के दिनों में ग़मों, फ़िकों और मरज़ों की यह बहुतात नहीं थी, साथ ही पुरानी तारीख भी मानती है कि कुछ हजार साल पहले की तबई उम्र का तनासुब मौजूदा तनासुब से बहुत ज़्यादा था। हजरत नूह ६६ की तबई उम्र का मामला भी इसी क्रिस्म के इस्तिस्ना (अपवाद) में से समझना चाहिए जो अंबिया 8 की तरीख में अल्लाह की आयत और उसकी निशानी की फेहरिस्त में गिनी जाती है और जिनकी हिक्मत व गायत का मामला खुद अल्लाह तआला के सुपुर्द है। हक़ और सही मस्लक यही है और इस मुद्दत को घटाने के लिए दूर-दूर की तावीलें करने की बिल्कुल जरूरत नहीं।
कुरआन मजीद में हजरत नूह ६ का जिक्र अठाईस सूरतों में तैंतालीस जगह आया है।
(अंकबूत 27:14)
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