Duniya ka sabse pehla insaan

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 बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम 

 हज़रत आदमالعليل

पिछली पोस्ट में हम ने जाना था की दुनिया का सबसे पहला इंसान कोन था? आज हम इस पोस्ट में डिटेल से जानेंगे की पृथ्वी पर सबसे पहला इंसान कोन था?


आदम की पैदाइश, फ़रिश्तों को सज्दे का हुक्म, शैतान का इंकार

अल्लाह तआला ने आदम को मिट्टी से पैदा किया और उनका खमीर तैयार होने से पहले ही उसने फ़रिश्तों को यह खबर दी कि वह बहुत जल्द मिट्टी से एक मख़्ज़ूक़ पैदा करने वाला है जो 'बशर' कहलाएगी और जमीन में हमी ख़िलाफ़त का शरफ़ हासिल करेगी।

दुनिया का सबसे पहला इंसान,pic by pixaby.com








आदम का खमीर मिट्टी से गूंधा गया और ऐसी मिट्टी से गूंधा गया जो नित नई तब्दीली कुबूल कर लेने वाली थी। जब यह मिट्टी पक्की ठीकरी की तरह आवाज देने और खनखनाने लगी तो अल्लाह तआला ने उस मिट्टी के पुतले में रूह फूंकी और वह एक ही वक़्त में गोश्त-पोस्त, हड्डी-पुढे का जिंदा इंसान बन गया और इरादा, शऊर, हिस्स, अक़्ल और विज्दानी जज़्बात व कैफ़ियात का हामिल नजर आने लगा। तब फ़रिश्तों को हुक्म हुआ कि तुम उसके सामने सज्दे में गिर जाओ, फ़ौरन तमाम फ़रिश्तों ने इर्शाद की तामील की, मगर इब्लीस (शैतान) ने घमंड और सरकशी के साथ साफ़ इंकार कर दिया।


सज्दे से इन्कार करने पर इब्लीस का मुनाज़रा

अल्लाह तआला अगरचे गैब का इल्म रखने वाला और दिलों के भेदों तक को जानने वाला है और माजी, हाल और मुस्तनिवल (भूत, वर्तमान, भविष्य) सब उसके लिए बराबर हैं, मगर उसने इम्तिहान व आजमाइश के लिए इब्लीस (शैतान) से सवाल किया-(आराफ 7/12)

किस बात ने चुकने से रोका, जबकि मैंने हुक्म दिया था?' इब्लीस ने जवाब दिया-  (आराफ 7/12)

इस बाल ने कि में आदम से बेहतर हूँ तूने मुझे आग से पैदा किया, इसे मिट्टी से।

दुनिया का सबसे पहला इंसान,pic by pixaby.com









शैतान का मक्सद यह था कि मैं आदम से अफजल हूं, इसलिए कि तूने मुझको आग से बनाया है और आग बुलन्दी और बरतरी चाहती है, और आदम 'खाकी महतूक' भला ख़ाक को आग से क्या निस्बत? ऐ अल्लाह! फिर यह तेरा हुक्म कि नारी (नार यानी आग से बना हुआ) ख़ाकी (खाक यानी मिट्टी से बना हुआ) को सज्या करे, क्या इंसाफ़ के मुताबिक़ है? मैं तमाम हालतों में आदम से बेहतर हूं इसलिए वह मुझे सज्दा करे, न कि मैं उसके सामने सज्दा करूं? मगर बदबख्त शैतान अपने घमंड में चूर होने की वजह से भूल गया कि जब तुम और आदम दोनों अल्लाह की मख्लूक हो तो मख्लूक की हकीकत खालिक से बेहतर, खुद वह महतूक भी नहीं जान सकती, वह अपने घमंड और गुरूर में यह न समझ सका कि मर्तबा की बुलन्दी और पस्ती उस माद्दे की बुनियाद पर नहीं है, जिससे किसी मख्लूक़ का खमीर तैयार किया गया है, बल्कि उसकी उन सिफ़तों पर है जो कायनात के पैदा करने वाले ने उसके अन्दर रख दिए हैं।


बहरहाल शैतान का जवाब, चूंकि घमंड और गुरूर की जहालत पर क़ायम था, इसलिए अल्लाह तआला ने उस पर वाजेह कर दिया कि जहालत से पैदा होने वाले घमंड व गुरूर ने तुझको इतना अंधा कर दिया है कि तू अपने पैदा करने वाले के हक़ और पैदा करने वाला होने की वजह से उसके एहतराम से भी मुन्किर हो गया इसलिए मुझको जालिम क़रार दिया और यह न समझा कि तुझको तेरी जहालत ने हक़ीक़त के समझने से आजिज बना दिया है, पस तू अब इस सरकशी की वजह से अबदी हलाकत का हक़दार है और यही तेरे अमल का कुदरती बदला है।


इब्लीस ने मोहलत तलब की

इब्लीस ने जब देखा कि कायनात के पैदा करने वाले के हुक्म के ख़िलाफ़ करने, तकब्बुर और रऊनत और अल्लाह पर जुल्म के इलज़ाम ने हमेशा के लिए मुझको रब्बुलआलमीन की आगोशे रहमत से मरदूद और जन्नत से महरूम कर दिया, तो तौबा और नदामत की जगह अल्लाह से यह दरख्वास्त की कि क़ियामत आने तक मुझको मोहलत दे और इस लम्बी मुद्दत के लिए जिंदगी की रस्सी लम्बी कर दे।

अल्लाह की हिक्मत का तक़ाज़ा भी यही था, इसलिए उसकी दरख्वास्त मंजूर कर ली गयी। यह सुनकर अब उसने फिर एक बार अपनी शैतानी का मुजाहरा किया, कहने लगा जब तूने मुझको रांदा-ए-दरगाह कर ही दिया, तो जिस आदम की बदौलत मुझे यह रुस्वाई नसीब हुई, मैं भी आदम की औलाद की राह मारूंगा और उनके सामने-पीछे, आस-पास और चारों ओर से होकर उनको गुमराह करूंगा और उनकी अक्सरीयत को तेरा नासपास और नाशुक्रगुज़ार वना छोड़ंगा अलबत्ता तेरे 'मुख्लिस बन्दे मेरे इग्वा के तीर के घायल न हो सकेंगे और हर तरह महफूज़ रहेंगे।









अल्लाह ने फ़रमाया, हम को इसकी क्या परवाह हमारी फ़ितरत का क़ानून, मुकाफ़ाते अमल और पादाशे अमल अटल क़ानून है। पस जो जैसा करेगा, वैसा भरेगा और जो बनी आदम मुझसे रूगरदानी करके तेरी पैरवी करेगा, वह तेरे ही साथ अल्लाह के अज़ाब का हक़दार होगा। जा, अपनी जिल्लत और रुस्वाई और ख़राब क़िस्मत के साथ यहां से दूर हो और अपनी और अपने पैरोकारों की अबदी लानत (जहन्नम) का इंतिज़ार करा।


आदम और दूसरे फ़रिश्ते

आदम की ख़िलाफ़त जैसा कि पहले बयान किया गया है, जब अल्लाह तआला ने हज़रत आदम को पैदा करना चाहा तो फ़रिश्तों को ख़बर दी कि मैं ज़मीन पर अपना ख़लीफ़ा बनाना चाहता हूं जो एख़्तियार और इरादे का मालिक होगा और मेरी जमीन पर, जिस क़िस्म का तसर्राफ. (इस्तेमाल का हक हासिल करना चाहेगा, कर सकेगा और अपनी जरूरतों के लिए अपनी मर्जी के मुताबिक काम ले सकेगा, गोया वह मेरी कुदरत और मेरे तसरांझ (इस्तेमाल) व अख्तियार का 'भाकर' होगा।

प्ररिश्तों ने यह सुना तो हैरत में रह गए और अल्लाह के दरबार में अर्ज किया कि अगर इस हस्ती की पैदाइश की हिक्मत यह है कि वह दिन-रात तेरी तस्बीह व तहसील में लगा रहे और तेरी तवृदीस और बुजुर्गी के गुन गाए तो इसके लिए हम हाजिर हैं, जो हर लम्हा तेरी हम्द व सना करते और बे-चून व चरा तेरा हुक्म बजा लाते हैं। हम को ती इस 'खाकी' से फ़िल्ला व फसाद की बू आती है। ऐसा न हो कि यह तेरी जमीन में खराबी और सुंरेजी पैदा कर दे? ऐ अल्लाह। तेरा यह फैसला आखिर किस हिक्मत पर मन्नी है?



बारगाहे इलाही से एक तो उनको यह अदब सिखाया गया कि मख्लूक को खालिक के मामलों में जल्दबाजी से काम न लेना चाहए और उसकी जानिब से हक़ीक़ते हाल के जाहिर होने से पहले ही शक व शुव्हा को सामने न लाना चाहिए और यह भी इस तरह कि इसमें अपनी बरतरी और बड़ाई का पहलू निकलता हो, कायनात का पैदा करने वाला इन हक़ीक़तों को जानता है, जिनकी तुम नहीं जानते और उसके इल्म में वह सब कुछ है, जो तुम नहीं जानते।

आदम की तालीम (इल्म का सिखाना) और फ़रिश्तों का इज्ज़ का इक़रार

इस जगह फरिश्तों का सवाल इसलिए न था कि वे अल्लाह तआला से मुनाजरा या उसके फैसले के मुताल्लिक्र मूशगाफ्री करें, बल्कि वे आदम की पैदाइश का सबब मालूम करना चाहते थे और यह कि उसको खलीफ़ा बनाने में क्या हिक्मत है? उनकी ख्वाहिश थी कि इस हिक्मत का राज उन पर भी खुल जाए, इसलिए उनके तर्जे अदा और मक्सद की ताबीर में कोताही पर संबीह के बाद अल्लाह तआला ने यह पसन्द फ़रमाया कि उनके इस सवाल का जवाब जो जाहिर में हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की तस्वीर पर मब्नी है, अमल व फेल के जरिए इस तरह दिया जाए कि उनको अपने आप आदमी की बरतरी और अल्लाह की हिक्मत की ब्लन्दी और ऊंचाई को न सिर्फ मानना पडे, बल्कि अपनी दरमांदगी और इज्ज़ का भी बदीही तौर पर मुशाहदा हो जाए, इसलिए हज़रत आदम को अपनी सबसे बड़ी मर्तबे वाली सिफल 'इल्म' से नवाजा और उनको चीजों का इल्म अता फरमाया और फिर फरिश्तों के सामने पेश करके इर्शाद फ़रमाया कि तुम इन चीजों के बारे में क्या इल्म रखते हो? उनके पास इल्म न था, क्या जवाब देते? मगर अल्लाह की दरगाह से कुर्व रखते थे, समझ गए कि हमारा इम्तिहान मक़्सूद नहीं है, क्योंकि इससे पहले हमको इसका इल्म ही कब दिया गया है कि आज़माइश की जाती बल्कि यह तंबीह मक़सूद है कि 'ख़िलाफ़ते इलाहिया का मदार तस्बीह व तहलील की कसरत और तक़्दीस व तम्जीद पर नहीं बल्कि 'इल्म' नामी सिफ़त पर है, इसलिए कि इरादा, अख्तियार, कुदरत व तसरूफ़ और कुदरत का अख्तियार या दूसरे लफ़्ज़ों में यों कहिए कि हुकूमत इल्म की जमीनी सिफ़त के बगैर नामुम्किन है। पस जबकि आदम को अल्लाह तआला ने अपने इल्म की सिफ़त का मुकम्मल मज्हर बनाया है तो बेशक वही अरजी खिलाफत का हक़दार है, न कि हम और हक़ीक़त भी यह कि अल्लाह के फ़रिश्ते अपनी जिम्मेदारियों के अलावा हर क़िस्म की दुन्यवी ख़्वाहिशों और जरूरतों से बे-नियाज़ हैं। इसलिए वे उनके इल्म को भी नहीं जानते थे और आदम को चूंकि इन सबसे वास्ता पड़ता था, इसलिए उनका हाल इसके लिए एक फ़ितरी बात थी जो रब्बुल-आलमीन की कामिल रबूबियत की बख़्शिश से अता हो और उसको वह सब कुछ बता दिया गया हो जो उसके लिए जरूरी था।


गोया हजरत आदम को इल्म की सिफ़त से इस तरह नवाज़ा गया कि फ़रिश्तों के लिए भी उनकी बरतरी और ख़िलाफ़त के हक़ के इक़रार के अलावा कोई रास्ता न रहा और यह मानना पड़ा कि अगर हम फ़रिश्ते जमीन पर अल्लाह के खलीफ़ा बनाए जाते तो कायनात के तमाम भेदों को जानते होते और कुदरत ने जो ख़वास और उलूम दिए हैं, उनसे एक साथ वाक्रिफ होते, इसलिए कि हम न खाने-पीने के मुहताज हैं कि जमीन में दी गई रोजी और खजानों की खोज करते, न मरज़ का ख़ौफ़ कि किस्म-किस्म की दवाओं, चीजों की ख़ासियतों, कीमियाई मिलावटों, तबई चीजों और आसमानी बातों के फ़ायदे, डाक्टरी ईजादों, नफ़्सानी और वज्दानी मालूमात और इसी तरह के बहुत से और क्रीमती उलूम व फुनून के भेद और उसकी हिक्मतों को जान सकते। बेशक यह सिर्फ़ हजरत इंसान के लिए मौजूं था कि वह जमीन पर अल्लाह का खलीफ़ा बने और उन तमाम हक़ाइक्र, मआरिफ और उलूम व फुनून से वाक्रिफ़ होकर नियाबतो इलाही का सही हक़ अदा करे।


हज़रत आदम का जन्नत में ठहरना और हव्वा का जीजा बनना

हज़रत आदम एक मुद्दत तक अकेले जिंदगी बसर करते रहे मगर अपनी जिंदगी और राहत व सुकून में एक वहशत और खला महसूस करते रहे थे और उनकी तबियत और फ़ितरत में किसी मूनिस व ग़मख्वार की याद नज़र आती थी। चुनांचे अल्लाह तआला ने हज़रत हव्या को पैदा किया और हजरत आदम 'अपना हमदम और साथी' पा कर बहुत खुश हुए और दिल में इत्मीनान महसूस किया। हजरत आदम व हव्वा को इजाजत थी कि वे जन्नत में रहें-सहें और उसकी हर चीज़ से फ़ायदा उठाएं, मगर एक पेड़ को निशान-जद करके बता दिया गया कि उसको न खाएं, बल्कि उसके पास तक न जाएं।


आदम का जन्नत से निकलना

अब इब्लीस को एक मौक़ा हाथ आया और उसने हज़रत आदम व हव्वा के दिल में यह वस्वसा डाला कि यह पेड़ जन्नत का पेड़ है। इसका फल खाना जन्नत में हमेशा आराम व सुकून और अल्लाह का कुर्ब पाने की जमानत देता है और क़स्में खाकर उनको बताया कि मैं तुम्हारा खैरख्वाह हूं, दुश्मन नहीं हूं। यह सुनकर हज़रत आदम के इंसानी और बशरी ख़्वास में सबसे पहले निस्यान (भूल-चूक) ने जुहूर किया और यह भुला बैठे कि अल्लाह का यह हुक्म ज़रूरी या, न कि रब की ओर से कोई मश्विरा। आखिरकार जन्नत के हमेशा के क्रियाम और अल्लाह के कुर्ब के अज़्म में लग्ज़िश पैदा कर दी और उन्होंने उस पेड़ का फल खा लिया। उसका खाना था कि बशरी लवाज़िम (इंसानी ज़रूरतें) उभरने लगीं। देखा तो नंगे हैं और लिबास से महरूम । जल्द-जल्द आदम व हव्वा दोनों पत्तों से सतर ढांकने लगे-गोया इंसानी तमद्दन की यह शुरूआत थी कि उसने ढांकने के लिए सबसे पहले पत्तों का इस्तेमाल किया।

दुनिया का सबसे पहला इंसान,pic by pixaby.com








इधर यह हो रहा था कि अल्लाह तआला का इताब (ग़ज़ब) उतरा और आदम से पूछ-ताछ हुई कि मना करने के बावजूद यह हुक्म का न मानना क्यों? आदम आख़िर आदम थे, अल्लाह के दरबार के मनबूल थे, इसलिए शैतान की तरह मुनाज़रा नहीं किया और अपनी ग़लतियों को तावीलों के परदे में छुपाने की बेमतलब की कोशिश से बाज रहें। नदामत व शर्मसारी के साथ इक़रार किया कि ग़लती ज़रूर हुई लेकिन इसकी वजह तमरुंद व सरकशी नहीं, बल्कि इंसान होने के नाते भूल-चूक इसकी वजह है, फिर भी ग़लती है, इसलिए तौबा व इस्तम्फ़ार करते हुए माफ़ कर दिए जाने की दख्र्यास्त करता हूं।

अल्लाह तआला ने उनके इस उज्ज्र को कुबूल दिया, मगर वक़्त आ गया था कि हज़रत आदम फ़रमाया और माफ़ कर अल्लाह की जमीन पर 'ख़िलाफ़त का हक़' अदा करें, इसलिए हिक्मत के तनाजे के तौर पर साथ ही यह फ़ैसला सुनाया कि तुमको और तुम्हारी औलाद को एक तय वक़्त तक जमीन पर क़ियाम करना होगा और तुम्हारा दुश्मन इब्लीस अदावत के अपने तमाम सामान के साथ वहां मौजूद रहेगा और तुमको इस तरह मलकूती और तागुती दो टकराने वाली ताक़तों के दर्मियान जिंदगी बसर करनी होगी। इसके बावजूद अगर तुम और तुम्हारी औलाद मुख़्लिस और सच्चे बन्दे और सच्चे नायब साबित हुए तो तुम्हारा असल वतन 'जन्नत' हमेशा की तरह तुम्हारी मिल्कियत में दे दिया जाएगा, इसलिए तुम और हव्वा यहां से जाओ और मेरी जमीन पर बसो और अपनी मुकर्रर की हुई जिंदगी तक उबूदियत का हक़ अदा करते रहो और इस तरह इंसानों के बाप और अल्लाह तआला के खलीफ्रा आदम अलैहि० ने जीवन-साथी हजरत हव्वा के साथ अल्लाह की जमीन पा क़दम रखा।


आदम के ज़िक्र से मुताल्लिक़ कुरआनी आयतें

कुरआन मजीद में हज़रत आदम का नाम 25 बार पचीस आयतों में आया है। और अंबिया के तज्किरों में सबसे पहला तल्किरा अबुत

 

1 हजरत इदरीस

2 हज़रत नूह

3 दुनिया का सबसे पहला इंसान कोन था?

4 रमजानुल मुबारक 

5 सबसे पहला धर्म आया हिंदु या मुस्लिम 

6 इस्लाम धर्म कब तक चलेगा?

7 दुनिया का सबसे पहला धर्म 

8 इस्लाम का अर्थ क्या है

9 हज़रत इब्राहीम का वाकिया

10 हज़रत सालेह अलेहिस्सलाम

11 हज़रत हूंद का वाकिया 

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