Hazrat Idrees Alaihissalam

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हज़रत इदरीसا

हजरत इदरीस का जिक्र कुरआन में सिर्फ दो जगह आया है- सूरः मरयम में और सूरः अंबिया में।

तर्जुमा - 'और याद करो कुरआन में इदरीस को, बिला शुव्हा वह सच्चे नवी थे और बुलन्द किया है हमने उनका मुक़ाम।' (मरयम 19:56) तर्जुमा-और इस्माईल और इदरीस और जुलकिफ़्ल, इनमें से हर एक था सन्न करने वाला।(अंबिया 21: 85)

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नाम-नसव और ज़माना

हजरत इदरीस के नाम-नसब और ज़माने के बारे में तारीख लिखने वालों को सख्त इख़्तिलाफ़ है और तमाम इख्तिलाफ़ी वजहों को सामने रखने के बाद भी कोई आख़िरी या तरजीह देने वाली राय क़ायम नहीं की जा सकती। वजह यह है कि कुरआन करीम ने तो रुश्द व हिदायत के अपने मक्सद के पेशे नजर, तारीखी बहस से जुदा होकर सिर्फ़ उनकी नुबूवत के रुत्वे की बुलन्दी और उनकी ऊंची सिफ़तों का जिक्र किया है और इसी तरह हदीस की रिवायतें भी इससे आगे नहीं जातीं। इसलिए इस सिलसिले में जो कुछ भी है, वे इसराईली रिवायतें हैं और वे भी आपसी टकराव और इख़्तिलाफ़ से भरी हुई हैं। (इसीलिए थोड़े में लिखने के पेशेनजर इन दूर-दराज से लाई गई बहसों से बचने की कोशिश की जा रही है)


खुद से एक जमाअत का यह ख्याल है कि हजरत इदरीस बाबिल में पैदा हुए और वहीं पले-बढ़े। उम्र के शुरूआती दिनों में उन्होंने हजरत शीस बिन आदम से इल्म हासिल किया। बहरहाल जब इदरीस सोचने-समझने की उम्र को पहुंचे तो अल्लाह ने उनको नुबूवत से सरफ़राज फ़रमाया तब उन्होंने शरीरों (बदमाशों) और फ़सादियों के राहे हिदायत की तबलीग शुरू की, पर फ़सादियों ने उनकी एक बात न सुनी और हज़रत आदम व शीस की शरीअत के मुखालिफ़ ही रहे, अलबत्ता एक छोटी-सी उनको अदद व हिसाब के इल्म का आलिम बनाया और अगर खुदा के उस पैग़म्बर के जरिए से इल्प सामने न आते, तो इन्सानी तबीयतों की वहां तक पहुंच मुश्किल थी। उन्होंने अलग-अलग जातों और गिरोहों के लिए उनके मुनासिबे हाल कायदे क़ानून मुकर्रर किए और पूरी दुनिया को चार हिस्सों में बांट कर हर चौथाई के लिए एक हाकिम मुकर्रर किया जो जमीन के उस हिस्से की सियासत और बादशाही का जिम्मेदार क़रार पाया और इन चारों के लिए जरूरी क़रार दिया कि तमाम क़ानूनों से बढ़-चढ़कर शरीयत का वह कानून रहेगा, जिसकी तालीम अल्लाह की वह्य के जरिए मैंने तुमको दी है।

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हज़रत इदरीस की तालीम का खुलासा

अल्लाह की हस्ती और उसकी तौहीद पर ईमान लाना सिर्फ कायनात पैदा करने वाले की परस्तिश करना, आखिरत के अज़ाब से बचाने के लिए भले अमलों को ढाल बनाना, दुनिया से वे-नियाज़ी, तमाम मामलों में अद्ल व इंसाफ को सामने रखना, मुकर्रर किए हुए तरीकों पर अल्लाह की इबादत करना, अय्यामे बीज़ के रोजे रखना, इस्लाम के दुश्मनों से जिहाद करना, जकात अदा करना, पाकी-सफाई के साथ रहना, खास तौर से जनाबत, कुत्ते और सूअर से बचना, हर नशीली चीजों से परहेज करना।



बाद में आने वाले नवियों के बारे में बशारत

हज़रत इदरीस ने अपनी उम्मत को यह भी बताया कि मेरी तरह इस दुनिया की दीनी व दुन्यवी इस्लाह के लिए बहुत-से नबी तशरीफ लाएंगे और उनकी नुमायां खास बातें ये होंगी।

वे हर एक बुरी बात से दूर और पाक होंगे। तारीफ के काबिल और फज़ाइल में कामिल होंगे। ज़मीन व आसमान के हालात को और उन मामलों को कि जिनमें कायनात के लिए शिफा है या मरज़, वल्य इलाही के जरिए इस तरह जानते होंगे कि कोई मांगने वाला भूखा-प्यासा न रहेगा। वे दुआओं को सुनने वाले होंगे। उनके मज़हब की दावत का खुलासा कायनात की इस्लाह होगा।जमाअत जरूर मुसलमान हो गई। अहजरत इदरीस ९ ने जब यह रंग देखा तो वहां से हिजरत का इराक किया और उपने मानने वालों को हिजरत कर जाने के लिए कहा। इदरीश उम्र की पैरवी करने वालों ने जब यह सुना तो उनको वतन का छोड़ना बस गरां गुजरा और कहने लगे कि बाबिल जैसा वतन हमको कहलं नसीर में सकता है? हज़रत इदरीस ने तसल्ली देते हुए फ़रमाया कि अगर तुर यह तकलीफ अल्लाह के रास्ते में उठाते हो, तो उसकी रहमत बहुत फैली से है, उसका अच्छा बदला जरूर देगा, पस हिम्मत न हारो और अल्लाह के हुक्म के आगे सरे नियाज झुका दो।


मुसलमानों की रजामंदी के बाद हजरत इदरीस और उनकी जमाङ्गत मिश्व की तरफ हिजरत कर गई और नील के किनारे एक अच्छी जगह चुनकर के सकूनत अपना ली। हजरत इदरीस और उनकी पैरवी करने वाली जमाउल ने पैगामे इलाही और भलाई का हुक्म देने और बुराई रोकने वाले का प्रतं अंजाम देना शुरू कर दिया। कहा जाता है कि उनके जमाने में बहत्तर जुबाने बोली जाती थीं और अल्लाह की अता व बहिशश से वह वक़्त की तमाम जुबानों को जानते थे और हर एक जमाअत को उसकी जबान में तब्लीत फ़रमाया करते थे। एक रिवायत के एतबार से हजरत इदरीस पहले आदमी हैं जिन्होंने कलम को इस्तेमाल किया।


हज़रत इदरीस की ख़ास बातें

हजरत इदरीस ने दीने इलाही के पैग़ाम के अलावा तमहुनी रियासत और शहरी जिंदगी, तमडुनी तौर-तरीकों की तालीम व तलकीन की और उनके ट्रेंड तालिब इल्मों ने कम व वेश दो सौ बस्तियां आबाद कीं। हजरत इदरीस ने इन तलबा को दूसरे इल्मों की भी तालीम की, जिसमें इल्मे हिक्मत और इल्मे तुजूम भी शामिल हैं। हजरत इदरीस पहली हस्ती हैं जिन्होंने हिक्मत व नुजूम के इल्म की शुरूआत की, इसलिए कि अल्लाह तआला ने उनको अफ़लाक और उनकी तींब, कवाकिब और उनके जमा होने और अलग होने के नुक्तों और उनके आपसी कशिश के राजों की तालीम दी और हजरत इदरीस की जमीनी ख़िलाफत जब हजरत इदरीस अल्लाह की जमीन के मालिक बना दिए गए, सी उन्होंने इल्म व अमल के एतबार से अल्लाह की मख्लूक को तीन तबकों के बांट दिया- काहिन, बादशाह, रियाया (प्रजा) और तर्तीब के एतबार के उनके दर्जे तै किए। काहिन सबसे पहला और ऊंचा दर्जा करार पाया, इसलिए कि वह अल्लाह तआला के सामने अपने नफ़्स के अलावा बादशाह और रियाया के मामलों में भी जवाबदेह है। 'बादशाह' का दूसरा दर्जा रखा गया इसलिए कि वह नफ़्स और राज्य के मामलों के बारे में जवाबदेह है और रियाया सिर्फ अपने नप्नस के लिए जवाबदेह है, इसलिए वह तीसरे तबके में शामिल है लेकिन ये तबके जिम्मेदारियों के एतबार से थे, नस्ल व खानदान के आख्तियारों के एतबार से नहीं। हज़रत इदरीस 80 'अल्लाह तक जाने' तक शरीयत और सियासत के इन्हीं कानूनों की तब्लीग फरमाते रहे।

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हजरत इदरीस से मुताल्लिक़ ख़ास बातें

उनकी अंगूठी पर यह इबारत खुदी हुई थी, 'अल्लाह पर ईमान के साथ-साथ सत्र फतहमंदी की वजह है।' उनके कमर से बंधने वाले पटके पर यह लिखा हुआ था, 'सच्ची ईदें तो अल्लाह के फज़ों के अदा करने में छिपी हुई हैं। दीन का कमाल शरीअत से जुड़ा हुआ है और मुरव्वत में दीन के कमाल की तकमील है।'नमाज़े जनाजा के वक़्त जो पटका बांधते थे, उस पर नीचे लिखे जुमले खुदे हुए थे। 'सआदतमंद वह है जो अपने नप्नस की निगरानी करे और परवरदिगार के सामने इंसान की शफाअत करने वाले उसके नेक अमाल हैं।'


हज़रत इदरीस की नसीहतें

हजरत इदरीस की बहुत-सी नसीहतें और आदाब व अख्लाक के जुम्ले मशहूर हैं, जो अलग-अलग जुबानों में जर्बुल मसल (कहावत) और रुमूज व असार (गूढ़ रहस्य) की तरह इस्तेमाल में आते हैं और उनमें से कुछ नीचे दिए जाते हैं-


1. अल्लाह की बेपनाह नेमतों का शुक्रिया इंसानी ताकत से  बाहर है।

2. जो इल्म में कमाल और अमले सालेह का ख़्वाहिशमंद हो, उसको जिहालत के अस्वाब और बद-किरदारी के क्ररीब भी न जाना चाहिए। क्या तुम नहीं देखते कि हरफ़न मौला  कारीगर अगर सीने का इरादा करता है तो सूई हाथ में लेता है, न कि बर्मा। पस हर वक्त यह उसूल नजरों में रहना चाहिए।

3. दुनिया की भलाई 'हसरत' है और बुराई 'नदामत' ।

4. अल्लाह की याद और अमले सालेह के लिए खुलूसे नीयत  शर्त है।

5. न झूठी क़स्में खाओ, न अल्लाह तआला के नाम को क़स्मों के लिए तख्ता-ए-मश्क बनाओ और न झूठों को क़समें खाने पर आमादा करो, क्योंकि ऐसा करने से तुम भी गुनाह में शरीक हो जाओगे।

6. जलील पेशों को अख्तियार न करो (जैसे सींगी लगाना, जानवरों की जुफ्ती पर उजरत लेना, वगैरह)

7. अपने बादशाहों की (जो कि पैग़म्बर की तरफ़ से शरीअत के हुक्मों के नाफ़िज़ करने के लिए मुकर्रर किए जाते हैं) इताअत करो और अपने बड़ों के सामने पस्त रहो और हर वक़्त अल्लाह की तारीफ़ में अपनी जुबान को तर रखो।

8. हिक्मत रूह की जिंदगी है।

9. दूसरों की खुश ऐशी पर हसद न करो, इसलिए कि उनकी यह मस्रूर जिंदगी कुछ दिनों की है।

10. जो जिंदगी की ज़रूरतों की ज़्यादा तलब रखता हो वह कभी कानेज़ नहीं रहा।


नोट : कुछ तहक़ीक़ करने वालों और तकिरा लिखने वालों ने हज़रत और यूनानी फ़र्जी अफ्सानवी (Greek Mythology) के (Hermes) इदरीस हरमज़ में मुताबकृत पैदा करने की कोशिश की है, जो सही नहीं है। हरमज (Hermes) को उन फ़र्जी अफ्सानों में हिक्मत व फ़साहत का देवता कहा जाता है। रूमी उसको 'अतारद' कहते हैं।

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