शरीअत
![]() |
नबी और रसूल |
जिस तरह अल्लाह तआला की जात और सिफ्तों का जानना जरूरी है उसी तरह यह भी जानना लाजिमी है कि नबी में क्या क्या बातें होनी चाहिये और क्या न होनी चाहिये ताकि आदमी कुफ्र से बचा रहे ।
नबी और रसूल
रसूल के मायने हैं ख़ुदा के यह से बंदों के पास खुदा का पैगाम लाने वाला
नबी कौन होता है
नबी वह आदमी है जिसके पास वही यानी खुदा का पैगाम आया लोगों को ख़ुदा का रास्ता बताने के लिये ख्वाह यह पैगाम नबी के पास फरिश्ता लेकर आया हो या खुद नबी को अल्लाह की तरफ से इसका इल्म हुआ हो। कई नवी और कई फरिश्ते रसूल हैं। नबी सब मर्द थे न कोई जिन्न नबी हुआ न कोई औरत नबी हुई। इबादत रियाजत के ज़रिये से आदमी नबी नहीं होता महज अल्लाह तआला की मेहरबानी से होता है। इसमें आदमी की कोशिश नहीं चलती अलबत्ता नबी अल्लाह तआला उसी को बनाता है जिसको इस लायक पैदा करता है जो नबी होने से पहले ही तमाम बुरी बातों से दूर रहता है और अच्छी बातों से संवर चुकता है नबी में कोई ऐसी बात नहीं होती जिससे लोग नफरत करते हो। नबी का चलन शक्ल व सूरत हसब व नसब
नबी का चाल चलन, शक्ल सूरत, हसब नसब, तौर तरीका बातचीत सब अच्छे और बे ऐब होते हैं नबी की अक्ल कामिल होती है नबी सब आदमियों से ज्यादा अक्लमंद होते हैं। बड़े से बड़े हकीम फलसफी की अवल नबी की अक्ल के लाखवी हिस्सा तक भी नहीं पहुंचती। जो यह माने कि कोई शख्स अपनी कोशिश से नबी हो सकता है, वह काफिर है और जो यह समझे कि नबी की नबुव्वत छीनी जा सकती है वह भी काफिर है ।
मासूम कौन है?
नबी और फरिश्ता मासूम होता है यानी कोई गुनाह उससे नहीं हो सकता। नबी और फ़रिश्ता के अलावा किसी इमाम और वली को मासूम मानना गुमराही व बदमज़हबी है। अगरचे इमामों और बड़े बड़े वलियों से भी गुनाह नहीं होता लेकिन कभी कोई गुनाह हो जाये तो शरअन मुहाल भी नहीं अल्लाह का पैगाम 1 पहुंचाने में नबी से भूलचूक नहीं हो सकती मुहाल है।
नबी की तरफ तकय्या की निस्बत का हुक्म
जो यह कहे कि कुछ अहकाम तकय्यतन यानी लोगों के डर से या किसी और वजह से नहीं पहुंचाया वह काफ़िर है। अंबिया तमाम मखलूक से अफ़ज़ल है। यहां तक कि उन फ़रिश्तों से भी अफ़ज़ल हैं जो रसूल हैं।
वली को नबी से अफ़ज़ल मानने का हुक्म
वली कितने ही बड़े मर्तबा वाला किसी नबी के बराबर नहीं हो सकता जो किसी गैर नबी को किसी नबी से अफ़ज़ल बताये वह काफिर है ।
अक़ीदा : नबी की ताज़ीम फर्जे ऐन बल्कि तमाम फ़ायज़ की असल है। किसी नबी की अदना तौहीन या तकज़ीब कुफ़ है। सारे नबी अल्लाह तआला के नज़दीक बड़ी वजाहत व इज्जत वाले हैं उनको अल्लाह तआला के नज़दीक मआज़ल्लाह चूहड़े चमार की मिस्ल कहना खुली गुस्ताखी और कलिमए कुफ्र हैं।
नबी की हयात
अंबिया अलैहिमुस्सलाम अपनी अपनी कब्रों में उसी तरह ज़िन्दा हैं जैसे दुनिया में थे। अल्लाह का वादा पूरा होने के लिये एक आन को उन्हें मौत आई है फिर जिन्दा हो गये उनकी ज़िन्दगी शहीदों की जिन्दगी से बहुत बढ़कर है।
नबी का इल्म
अकीदा : अल्लाह तआला ने अंबिया अलैहिमुस्सलाम को ग़ैब की बातें बताई । ज़मीन व आसमान का हर हर ज़र्रा हर नबी की नज़र के सामने है। यह इल्मे गैब अल्लाह के दिये से है लिहाजा यह इल्म अताई हुआ। और अल्लाह तआला का इल्म चूंकि किसी का दिया हुआ नहीं है बल्कि खुद उसे हासिल है लिहाजा जाती हुआ। अब जबकि अल्लाह तआला के इल्म और रसूल के इल्म का फर्क मालूम हो गया तो जाहिर हो गया कि नबी व रसूल के लिये ख़ुदा का दिया हुआ इल्मे ग़ैब मानना शिर्क नहीं बल्कि ईमान है जैसा कि आयतों और हदीसों से साबित है।
अकीदा : कोई उम्मती जुहद व तकवा, ताअत व इबादत में नबी से नहीं बढ़ सकता। अंबिया सोते जागते हर वक्त यादे इलाही में लगे रहते हैं।
अक़ीदा : अंबिया की तादाद मुकर्रर करनी नाजायज़ है उनकी पूरी तादाद का सही इल्म अल्लाह ही को है।
More posts
3 दुनिया का सबसे पहला इंसान कोन था?
5 सबसे पहला धर्म आया हिंदु या मुस्लिम
एक टिप्पणी भेजें
0टिप्पणियाँ