Hazrat Ibrahim ka waqiya

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हज़रत इब्राहीम को आग में डालना

घटना विवरण
आग की तैयारी

नमरूद और उसकी क़ौम ने इब्राहीम को सज़ा देने के लिए आग धधकाई। उन्होंने कई दिन तक आग को जलाया।

इब्राहीम का आग में फेंकना

जब आग तैयार हो गई, तो इब्राहीम को एक गोफन में डालकर आग में फेंका गया।

अल्लाह की मदद

अल्लाह ने आग को हुक्म दिया कि वह इब्राहीम को न जलाए। आग उनके लिए ठंडी और सुरक्षित हो गई।

दुश्मनों का नाकाम होना

इब्राहीम ने आग में रहकर भी अपने हक़ की दावत को जारी रखा, जिससे उनके दुश्मनों की सारी कोशिशें विफल हो गईं।

निष्कर्ष

सच्चाई के मार्ग पर चलने वाले लोगों के लिए अल्लाह की मदद हमेशा मौजूद रहती है।

कुरआन पाक के रुश्द व हिदायत का पैग़ाम चूं कि इब्राहीमी मिल्लत का पैगाम है, इसलिए कुरआन पाक में जगह-जगह हज़रत इब्राहीम का ज़िक्र किया गया है, जो मक्की-मदनी दोनों क़िस्म की सूरतों में मौजूद है, यानी 35 सूरतों की 63 आयतों में हज़रत इब्राहीम का ज़िक्र मिलता है।



हज़रत इब्राहीम के वालिद का नाम

के वालिद का नाम के तारीख और तौरात दोनों हज़रत इब्राहीम 'तारिख' बताते हैं और कुरआन पाक के एतबार से हज़रत इब्राहीम वालिद का नाम 'आज़र' है। इस सिलसिले में उलेमा, तफ्सीर लिखने वाले, मग्रिबी मुश्तरिकों और तहक़ीक़ करने वालों ने बड़ी-बड़ी, लंबी-लंबी बहसें की हैं लेकिन इनमें अख्तियार की गई ठंडी ठंडी बातें हैं इसलिए कि कुरआन मजीद ने जब खोल-खोल कर आजर को अब (इब्राहीम का बाप) कहा है तो फिर अंसाब के उलेमा और बाइबिल की तख़्मीनी अटकलों से मुतास्सिर होकर कुरआन मजीद की यक़ीनी ताबीर को मजाज़ कहने या इससे भी आगे बढ़कर कुरआन मजीद में क़वाइद की बातें मानने पर कौन-सी शरई और हक़ीक़ी ज़रूरत मजबूर करती है। साफ़ और सीधा रास्ता यह है कि जो कुरआन मजीद में कहा गया उसको मान लिया जाए, चाहे वह नाम हो या लक़ब हो

हज़रत इब्राहीम और दूसरे अंबिया अलैहिमुस्सलाम हज़रत इब्राहीम के हालात के साथ उनके भतीजे हज़रत लूत और उनके बेटों हज़रत इसमाइल और हज़रत इस्हाक़ वाक़िआत भी वाविस्ता हैं। इन तीनों पैग़म्बरों के तफ्सीली हालात के इनके तज्क़िरों में बयान किए गए हैं, यहां सिर्फ हज़रत इब्राहीम के हालात के तहत कहीं कहीं जिक्र आएगा।

हज़रत इब्राहीम की अज़्मत

हजरत इब्राहीम की शान की इस अज़्मत के पेशेनजर जो नबियों और रसूलों के दर्मियान उनको हासिल है कुरआन मजीद में उनके वाक्रिआत को अलग-अलग उस्लूब के साथ जगह-जगह बयान किया गया है। एक जगह पर अगर थोड़े में जिक्र है, तो दूसरी जगह तफ्सील से तज्झिरा किया गया है और कुछ जगहों पर उनकी शान और खूबी को सामने रखकर उनकी शख़्सियत को नुमायां किया गया है।

तौरात यह बताती है कि हजरत इब्राहीम इराक़ के क़स्बा 'उर' के बाशिंदे थे और अहले फ़द्दान में से थे और उनकी क़ौम बुत-परस्त थी, जबकि इंजील में साफ़ लिखा है कि उनके वालिद नज्जारी का पेशा करते और अपनी क़ौम के अलग-अलग क़बीलों के लिए लकड़ी के बुत बनाते और बेचा करते थे, मगर हजरत इब्राहीम को शुरू ही से हक़ की बसीरत और रुश्द व हिदायत अता फ़रमाई और वे यह यक़ीन रखते थे कि बुत न देख सकते हैं न सुन सकते हैं और न किसी की पुकार का जवाब दे सकते हैं और न नफ़ा व नुक्सान का उनसे कोई वास्ता है और न लकड़ी के खिलौनो और दूसरी बनी हुई चीजों के और उनके बीच कोई फ़र्क़ और इम्तियाज़ है। वे सुबह व शाम आंख से देखते थे कि इन बेजान मूर्तियों को मेरा बाप अपने हाथों से बनाता और गढ़ता रहता है और जिस तरह उसका दिल चाहता है नाक-कान आंखें गढ़ लेता है और फिर ख़रीदने वालों के हाथ बेच देता है, तो क्या ये ख़ुदा हो सकते हैं या ख़ुदा-जैसे या ख़ुदा के बराबर हो सकते हैं?

हजरत इब्राहीम ने जब यह देखा कि क़ौम बुतपरस्ती, सितारापरस्ती और मज़ाहिर-परस्ती में ऐसी लगी हुई है कि ख़ुदा-ए-बरतर की कुदरते मुतलक्का और उसके एक होने और समद होने का तसव्वुर भी उनके दिलों में बाक़ी न रहा और अल्लाह के एक होने के अक़ीदे से ज़्यादा कोई ताज्जुब की बात नहीं रही, तब उसने अपनी हिम्मत चुस्त की और जाते वाहिद के भरोसे पर उनके सामने दीने हक्क़ का पैग़ाम रखा और एलान किया-

'ऐ क्रीम! यह क्या है जो मैं देख रहा हूं कि तुम अपने हाथ से बनाए हुए बुतों की परस्तिश में लगे हुए हो। क्या तुम इस क़दर ग़फ़लत के ख़्वाब में हो कि जिस बेजान लकड़ी को अपने हथियारों से गढ़ कर मूर्तियां तैयार करते हो, अगर वे मर्जी के मुताबिक़ न बनें, तो उनको तोड़ कर दूसरे बना लेते हो, बना लेने के बाद फिर उन्हीं को पूजने और नफा-नुक्सान का मालिक समझने लगते हो, तुम इस खुराफात से बाज़ आ जाओ, अल्लाह की तौहीद के नग्मे गाओ और उस एक हक़ीक़ी मालिक के सामने सरे नियाज झुकाओ जो मेरा, तुम्हारा और कुल कायनात का ख़ालिक व मालिक है। मगर क़ौम ने उसकी आवाज़ पर बिल्कुल ध्यान न धरा और चूंकि हक़ सुनने वाले कान और हक़ देखने वाली निगाह से महरूम थी, इसलिए उसने जलीलुलक़द्र पैग़म्बर की दावते हक़ का मज़ाक़ उड़ाया और ज़्यादा-से-ज़्यादा तमरुंद व सरकशी का मुजाहरा किया।

बाप को इस्लाम की दावत और बाप-बेटे का मुनाज़रा

हज़रत इब्राहीम देख रहे थे कि शिर्क का सबसे बड़ा मर्कज़ खुद उनके अपने घर में क़ायम है और आज़र की बुतपरस्ती और बुतसाज़ी पूरी क़ौम के लिए एक धुरी बनी हुई है इसलिए फ़ितरत का तक़ाज़ा है कि हक़ की दावत और सच्चाई के पैग़ाम के फ़र्ज़ की अदाएगी की शुरूआत वर से ही होनी चाहिए, इसलिए हज़रत इब्राहीम ने सब से पहले अपने वालिद 'आज़र' ही को मुखातब किया और फ़रमाया-

'ऐ बाप! ख़ुदापरस्ती और मारफ़ते इलाही के लिए जो रास्ता तूने अपनाया है और जिसे आप बाप-दादा का पुराना रास्ता बताते हैं, यह गुमराही और बातिलपरस्ती का रास्ता है और सीधा रास्ता (राहे हक़) सिर्फ वही है, जिसकी मैं दावत दे रहा हूं। ऐ बाप! तौहीद ही नजात का सरचश्मा है, न कि तेरे हाथ के बनाए गए बुतों की पूजा और इबादत। इस राह को छोड़कर हक़ और तौहीद के रास्ते को मज़बूती के साथ अख्तियार कर, ताकि तुझको अल्लाह की रज़ा और दुनिया और आख़िरत की सआदत हासिल हो।

मगर अफ़सोस कि आज़र पर हज़रत इब्राहीम की नसीहतों का बिल्कुल कोई असर नहीं हुआ, बल्कि हक़ कुबूल करने के बजाए आज़र ने बेटे को धमकाना शुरू किया। कहने लगा कि इब्राहीम असार तू. बुतों की बुराई से बाज़ न आएगा, तो मैं तुझको पत्थर मार-मारकर हलाक कर दूंगा। हजरत इब्राहीम ने जब यह देखा कि मामला हद से आगे बढ़ गया और एक तरफ़ अगर बाप के एहतराम का मसला है तो दूसरी तरफ़ फ़र्ज की अदायगी हक़ की हिमायत और अल्लाह के हुक्म की इताअत का सवाल, तो उन्होंने सोचा और आखिर वही किया जो ऐसे ऊंचे इंसान और अल्लाह की जलीलुलकद्र पैग़म्बर के शायाने शान था। उन्होंने बाप की सख्ती का जवाब सख्ती से नहीं दिया। हक़ीर समझने और जलील करने का रवैया नहीं बरता बल्कि नहीं, लुत्फ़ व करम और अच्छे अख्लाक़ के साथ यह जवाब दिया ऐ बाप! अगर मेरी बात का यही जवाब है तो आज से मेरा-तेरा सलाम है। में अल्लाह के सच्चे दीन और उसके पैग़ामे हक़ को नहीं छोड़ सकता और किसी हाल में बुतों की परस्तिश नहीं कर सकता। मैं आज तुझसे जुदा होता हूं, मगर ग़ायबाना दरगाहे इलाही में बख्रिशश तलब करता रहूंगा, ताकि तुझको हिदायत नसीब हो और तू अल्लाह के अज़ाब से नजात पा जाए।

क़ौम को इस्लाम की दावत और उससे मुनाज़रा

बाप और बेटे के दर्मियान जब मेल की कोई शक्ल न बनी और आज़र ने किसी तरह इब्राहीम की रुश्द व हिदायत को कुबूल न किया, तो हजरत इब्राहीम ने आज़र से जुदाई अख्तियार कर ली और अपनी हक़ की दावत और रिसालत के पैग़ाम को फैला दिया और अब सिर्फ आज़र ही मुखातब न रहा बल्कि पूरी कौम को मुखातब बना लिया, मगर क़ौम अपने बाप-दादा के दीन को कब छोड़ने वाली थी, उसने इब्राहीम की एक न सुनी और हक़ की दावत के सामने अपने बातिल माबूदों की तरह गूंगे, अंधे और बहरे बन गए और जब इब्राहीम ने ज़्यादा जोर देकर पूछा कि यह तो बतलाओ कि जिनकी तुम पूजा करते हो, ये तुम्हें किसी क़िस्म का भी नफ़ा या नुक्सान पहुंचाते हैं, कहने लगे कि इन बातों के झगड़े में हम पड़ना नहीं चाहते? हम तो यह जानते. हैं कि हमारे बाप-दादा यही करते चले आए हैं, इसलिए हम भी वही कर रहे हैं। तब हजरत इब्राहीम ने एक खास अन्दाज से एक ख़ुदा की हस्ती की तरफ़ तवज्जोह दिलाई, फ़रमाने लगे, मैं तो तुम्हारे इन सब बुतों को अपना दुश्मन  जानता हूं, यानी में इनसे बे-खौफ व खत्तर होकर इनसे जंग का एलान करता हूं कि अगर यह मेरा कुछ बिगाड़ सकते हैं तो अपनी हसरत निकाल लें। अलबत्ता में उस हस्ती को अपना मालिक समझता हूं जो तमाम जहानों का परवरदिगार है। जिसने मुझको पैदा किया और सीधा रास्ता दिखाया, जी मुझको खिलाता-पिलाता यानी रिज़्क देता है और जब में मरीज़ हो जाता हूं तो वह मुझको शिफ़ा बख्शता है और मेरी जिंदगी और मौत दोनों का मालिक है और यानी खताकारी के वक़्त जिससे यह लालच करता हूं कि वह क्रियामत के दिन मुझको बख़्श दे और मैं उसके हुजूर में यह दुआ करता रहता हूं, ऐ परवरदिगार! तू मुझको सही फैसले की ताक़त अता फरमा और मुझको नेकों की सूची में दाखिल कर और मुझको जुबान की सच्चाई अता कर और जन्नते नईम के वारिसों में शामिल कर। मगर आजर और आजर की क्रीम के दिल किसी तरह हक कुबूल करने के लिए नर्म न हुए और उनका इंकार हद से गुज़रता ही गया।

सितारा परस्ती

हजरत इब्राहीम की क़ौम बुतपरस्ती के साथ-साथ सितारा-परस्ती भी करती थी और यह अक़ीदा था कि इंसानों की मौत और ह्यात, उनकी रोजी, उनका नफा-नुक्सान, खुश्कसाली, क्रहतसाली, जीत और कामियाबी और हार और पस्ती, गरज दुनिया के तमाम कारखाने का नज़्म व नस्क्र तारे और उनकी हरकतों की तासीर पर चल रहा है और यह तासीर उनकी जाती सिफ़तों में से है, इसलिए इनकी खुशनूदी जरूरी है और यह उनकी पूजा के बिना मुम्किन नहीं है।

इस तरह हज़रत इब्राहीम जिस तरह उनको उनकी सिफ़ली, झूठे माबूदों की हक़ीक़त खोल करके हक़ के रास्ते की तरफ़ दावत दी, उसी तरह जरूरी समझा कि उनके झूठे बातिल माबूदों की बे-सबाती और फ़ना के मंजर को पेश करके इस हक़ीक़त से भी आगाह कर दें कि तुम्हारा यह ख़्याल बिल्कुल गलत है कि इन चमकते हुए सितारों, चांद और सूरज को ख़ुदाई ताक़त हासिल है। हरगिज़ नहीं, यह बेकार का ख्याल और बातिल अक़ीदा है। मगर ये बातिल-परस्त जबकि अपने खुद के गढ़े हुए बुतों से इतने हरे हुए थे कि उनको बुरा कहने वाले के लिए हर वक़्त यह सोचते थे कि उनके समृध में आकर तवाह व बर्बाद हो जाएगा, तो ऐसे औहाम परस्तों के दिलों में बुलन्द सितारों की पूजा के खिलाफ जान्या पैदा करना कुछ आसान काम न था इसलिए हजरत इब्राहीम ने उनके दिमाग के मुनासिब एक अजीव और दिलचस्प तरीक़ा बयान व अख्तयार किया।


तारों भरी रात थी, एक सितारा खूब रोशन था। हज़रत इब्राहीम ने उसको देखकर फ़रमाया 'मेरा रव यह है।' इसलिए अगर सितारे की रब मान सकते हैं तो यह उनमें सबसे मुमताज और रोशन है। लेकिन जब वह अपने तैशुदा वक्त पर नज़र से ओझल हो गया और उसको यह मजाल न हुई कि एक बड़ी और रहनुमाई करा सकता और कायनात के निज़ाम से हट कर अपने पूजने वालों के लिए जियारतगाह बना रहता, तब हजरत इब्राहीम ने फ़रमाया, मैं छुप जाने वालों को पसंद नहीं करता। यानी जिस चीज पर मुझसे भी ज़्यादा तब्दीलियों का असर पड़ता हो और जो जल्द-जल्द इन असरात को कुबूल कर लेता हो, वह मेरा माबूद क्यों हो सकता है?फिर निगाह उठाई तो देखा कि चांद आब व ताब के साथ सामने मौजूद है, उसको देखकर फ़रमाया, 'मेरा रव यह है।' इसलिए यह खूब रोशन है और अपनी ठंडी रोशनी से सारी दुनिया को नूर का गढ़ बनाए हुए है। पस अगर तारों को रब बनाना ही है तो इसी को क्यों न बनाया जाए, क्योंकि यही इसका ज़्यादा हक़दार नज़र आता है।


फिर जब सुबह का वक्त होने लगा तो चांद के भी हल्के पड़ जाने और छुप जाने का वक़्त आ पहुंचा और जितना ही सूरज के उगने का वक़्त होता गया, चांद का जिस्म देखने वाले की नज़रों से ओझल होने लगा, तो यह देखकर हजरत इब्राहीम ने एक ऐसा जुम्ला फ़रमाया, जिससे चांद के रव होने की मनाही के साथ-साथ एक अल्लाह की हस्ती की तरफ़ क्रीम की तवज्जोह इस ख़ामोशी से फेर दी कि क़ौम इसका एहसास न कर सके और इस बात-चीत का एक ही मक्सद है यानी 'सिर्फ़ एक अल्लाह पर ईमान', वह उनके दिलों में बगैर क़स्द व इरादे के बैठ जाए, फ़रमाया -अगर मेरा सच्चा पालनहार मेरी रहनुभाई न करता, तो में भी जरूर गुमराह क्रीम में से ही एक होता।पस इतना फ़रमाया और खामोश हो गए, इसलिए कि इस सिलसिले की अभी एक कड़ी और बाकी है और क्रीम के पास अभी मुक़ाबले के लिए एक हथियार मौजूद है इसलिए इससे ज्यादा कहना मुनासिब नहीं था।

तारों भरी रात खत्म हुई, चमकते सितारे और चांद सब नज़रों से ओझल हो गए, क्यों? इसलिए कि अब आफताब आलमताव का रुखे रोशन सामने आ रहा है। दिन निकल आया और वह पूरी आब व ताब से चमकने लगा।


हजरत इब्राहीम ने उसको देखकर फ़रमायाः वह है मेरा रव क्योंकि यह तारों में सबसे बड़ा है और निजामे फलकी में इससे बड़ा सितारा हमारे सामने दूसरा नहीं है। लेकिन दिन भर चमकने और रोशन रहने और पूरी दुनिया को रोशन करने बाद मुकर्रर वव्रत पर उसने भी इराक़ की सरजमीन से पहलू बचाना शुरू कर दिया और अंधेरी रात धीरे-धीरे सामने आने लगी। आखिरकार वह नजरों से गायब हो गया तो अब वक्त आ पहुंचा कि इब्राहीम असल हकीकत का एलान कर दें और क्रीम को लाजबाव बना दें कि उनके ज़क्रीदे के मुताबिक अगर इन तारों को रब और मावूद होने का दर्जा हासिल है, तो इसकी क्या वजह कि हमसे भी ज्यादा इनमें तब्दीलियां नुमायाँ हैं और वे जल्द-जल्द उनके असरों से मुतास्सिर होते हैं और अगर माबूद हैं तो इनमें (उफ्रोल) (चमक कर फिर डूब जाना) क्यों है? जिस तरह चमकते नजर आते थे उसी तरह क्यों न चमकते रहे, छोटे सितारों की रोशनी को चांद ने क्यों मांद कर दिया और चांद के चमकते रुख को आफताब के नूर ने किसलिए बेनूर बना दिया?


पस ऐ क्रीम में इन शिर्क भरे अकीदों से बरी हूं और शिर्क की जिंदगी से बेजार, बेशक मैंने अपना रुख सिर्फ उसी एक अल्लाह की ओर कर लिया है जो आसमानों और जमीनों का पैदा करने वाला है, मैं 'हनीफ' (एक अल्लाह की इताअत के लिए यक्सू) हूं और मुश्शिक (शिर्क करने वाला) नहीं हूं।अब कौम समन्नी कि यह क्या हुआ? इब्राहीम ने हमारे तमाम हथिधार बेकार और हमारी तमाम दलीलें पामाल करके रख दीं। अब हम इब्राहीम की इस मज़बूत और खुली दलील को किस तरह रद्द करें और उसकी रोशन देशी इस क्या जवाब है? वे इसके लिए बिल्कुल बेबस और पस्त थे और जब कोई बस न चला तो क्रायल होने और हक़ की आवाज को कुबूल कर लेने के बजाए हजरत इब्राहीम से झगड़ने लगे और अपने झूठे माबूदों से डराने लगे कि वे लेते तौहीन का तुझसे जरूर बदला लेंगे और तुझको इसकी सजा भुगतनी पड़ेगी। हजरत इब्राहीम ने फ़रमाया, क्या तुम मुझसे झगड़ते और अपने बुतों से मुझको डराते हो? हालांकि अल्लाह ने मुझ की सही रास्ता दिख दिया है और तुम्हारे पास गुमराही के सिवा कुछ नहीं, मुझे तुम्हारे बुतों की कतई कोई परवाह नहीं, जो कुछ मेरा रब चाहेगा, वही होगा। तुम्हारे बुत कुछ नहीं कर सकते, क्या तुमको इन बातों से कोई नसीहत हासिल नहीं होती? तुम को तो अल्लाह की नाफ़रानी करने और उसके साथ बुतों को शरीक ठहराने में भी कोई डर नहीं होता? जिसके लिए तुम्हारे पास एक दलील भी नहीं है और मुझसे यह उम्मीद रखते हो कि एक अल्लाह का मानने वाला और दुनिया के अमन का ज़िम्मेदार होकर मैं तुम्हारे बुतों से डर जाऊंगा, काश कि तुम समझते कि फ़सादी कौन है और कौन है सुलहपसन्द और अमनपसन्द ?सही अमन की जिंदगी उसी को हासिल है जो एक अल्लाह पर ईमान रखता और शिर्क से बेजार रहता है और वही रास्ते पर है।


बहरहाल अल्लाह की यह शानदार हुज्जत थी जो उसने हज़रत इब्राहीम की जुबान से बुत-परस्ती के ख़िलाफ़ हिदायत व तब्लीग़ के बाद कवाकिब-परस्ती (तारा-परस्ती) के रद्द में ज़ाहिर फ़रमाई और उनकी क़ौम के मुक्क़ाबले में उनको रोशन और खुली दलीलों से सरबुलन्दी अता फ़रमाई। ग़रज़ इन तमाम रोशन और खुली दलीलों के बाद भी जब क़ौम ने इस्लाम की दावत कुबूल न की और बुतपरस्ती और कवाकिबपरस्ती में उसी तरह पड़ी रही तो हजरत इब्राहीम ने एक दिन जम्हूर के सामने जंग का एलान कर दिया कि मैं तुम्हारे बुतों के बारे में एक ऐसी चाल चलूंगा जो तुम को जिच कर के ही छोड़ेगी।

तर्जुमा - 'और अल्लाह की क़सम ! मैं तुम्हारे न होने पर ज़रूर तुम्हारे बुतों के साथ खुफ़िया चाल चलूंगा।'(अल-अंबिया 21 : 79

इस मामले से मुताल्लिन असल सूरते हाल यह है कि जब इब्राहीम ने आज़र और क़ौम के लोगों को हर तरह वुत-परस्ती के ऐबों को ज़ाहिर कर के उससे बाज रहने की कोशिश कर ली और हर क़िस्म की नसीहतों के ज़रिए उनको यह बताने में ताक़त लगा ली कि ये वुत न नफ़ा पहुंचा सकते हैं, न नुक्सान और यह कि तुम्हारे काहिनों और पेशवाओं ने उनके बारे में तुम्हारे दिलों पर ख़ौफ़ बिठा दिया है कि अगर उनके इंकारी हो जाओगे तो ये ग़जबनाक हो कर तुमको तबाह कर डालेंगे, ये तो अपनी आई हुई मुसीबत को भी नहीं टाल सकते, मगर आज़र और क़ौम के दिलों पर मुतलक़ असर न हुआ और वे अपने देवताओं की ख़ुदाई ताक़त के अक़ीदे से किसी तरह बाज़ न आए, बल्कि काहिनों और सरदारों ने उनको और ज़्यादा पक्का कर दिया और इब्राहीम की नसीहत पर कान धरने से सख्ती के साथ रोक दिया, तब हज़रत इब्राहीम ने सोचा कि मुझको रुश्द व हिदायत का ऐसा पहलू अख्तियार करना चाहिए जिससे लोग यह देख लें कि वाक़ई हमारे देवता सिर्फ लकड़ियों और पत्थरों की मूर्तियां हैं, जो गूंगी भी हैं, बहरी भी हैं, और अंधी भी और दिलों में यह यक़ीन बैठ जाए कि जब तक उनके बारे में हमारे काहिनों और सरदारों ने जो कुछ कहा था वह बिल्कुल गलत और बे सर-पैर की बात थी और इब्राहीम ही की बात सच्ची है। अगर ऐसी कोई शक्ल बन गई तो फिर मेरे लिए हक़ की तब्लीग के लिए आसान राह निकल आएगी। यह सोचकर उन्होंने अमल का एक निज़ाम तैयार किया, जिसको किसी पर जाहिर नहीं होने दिया और उसकी शुरूआत इस तरह की कि बातों-बातों में अपनी क़ौम के लोगों से यह कह गुज़रे कि, 'मैं तुम्हारे बुतों के साथ एक खुफिया चाल चलूंगा।'गोया इस तरह उनको तंबीह करनी थी कि 'अगर तुम्हारे देवताओं में कुछ कुदरत है, जैसा कि तुम दावा करते हो तो वे मेरी चाल को बातिल और मुझको मजबूर कर दें कि मैं ऐसा न कर सकूं।मगर चूंकि बात साफ़ न थी, इसलिए क़ौम ने इस ओर कुछ तवज्जोह दी। इत्तिफ़ाक़ की बात कि क़रीब ही के जमाने में क़ौम का एक मज़हबी ला पेश आया। जब सब उसके लिए चलने लगे तो कुछ लोगों ने इब्राहीम से इसरार किया कि वह भी साथ चलें। हजरत इब्राहीम ने पहले तो इंकार किया और फिर जब इस तरफ से इसरार बढ़ने लगा तो सितारों की तरफ निगाह उठाई और फरमाने लगे, 'मैं आज कुछ बीमार-सा हूं।'चूंकि इब्राहीम की क्रीम की कवाकिब परस्ती की वजह से तारों में कमाल भी था और एतक्राद भी इसलिए अपने अक्रीदे के लिहाज से वे यह समझे कि इब्राहीम किसी नहस सितारे के बुरे असर में फंसे हुए हैं और यह सोचकर और किसी तफ्सील को जाने बगैर वे इब्राहीम को छोड़कर मेला चले गए।


अब जबकि सारी क्रीम, बादशाह, काहिन और मज़हबी पेशवा मेले में मसरूफ़ और शराब व कवाब में मशगूल थे, तो हजरत इब्राहीम ने सोचा कि वक़्त आ गया है कि अपने अमल के निज़ाम को पूरा करूं और आंखों से दिखाकर सब पर बाजेह कर दूं कि उनके देवताओं की हक़ीक़त क्या है? वह उठे और सबसे बड़े देवता के हैकल (मन्दिर) में पहुंचे। देखा तो वहां देवताओं के सामने क्रिस्म-किस्म के हलवों, फलों, मेवों और मिठाइयों के चढ़ावे रखे थे। इब्राहीम ने तंज भरे लहजे में चुपके-चुपके इन मूर्तियों से खिताब करके कहा कि यह सब कुछ मौजूद है, उनको खाते क्यों नहीं और फिर कहने लगे। मैं बात कर रहा हूं, क्या बात है कि तुम जवाब नहीं देते? और फिर इन सब को तोड़-फोड़ डाला और सबसे बड़े बुत के कांधे पर तीर रखकर वापस चले गए।


तर्जुमा-'पस चुपके से जा घुसा उनके बुतों में और कहने लगा (इब्राहीम) उनके देवताओं से, क्यों नहीं खाते? तुमको क्या हो गया? क्यों नहीं बोलते? फिर अपने दाहिने हाथ से उन सबको तोड़ डालो?' (अस्साफ़्फ़ात 37: 91-98)

तर्जुमा- 'पस कर दिया उनको टुकड़े-टुकड़े, मगर उनमें से बड़े देवता को छोड़ दिया, ताकि (अपने अक़ीदे के मुताबिक़) वे उसकी ओर रुजू करें (कि यह क्या हो गया?')

(अल-अंबिया 21: 58)

जब लोग मेले से वापस आए तो हैकल (मन्दिर) में बुतों का यह हाल पाया, बहुत बिगड़े, और एक दूसरे से पूछने लगे कि यह क्या हुआ और किसने किया? इनमें वे भी थे, जिनके सामने हजरत इब्राहीम 'तल्लाहि ल त-'अकीदन-नअसनारकुमः (अल-अविया 21-57) कह चुके थे, उन्होंने फौरन कहा कि यह उस आदमी का काम है, जिसका नाम इब्राहीम है। वही हमारे देवताओं का दुश्मन है।


तर्जुमा 'वे कहने लगे, यह मामला हमारे खुदाओं के साथ किसने किया है? बेशक वह जरूर जालिम है। (इनमें से कुछ) कहने लगे, हमने एक जवान की जुबान से इन बुत्तों का (बुराई के साथ) जिक्र सुना है, उसको इब्राहीम कहा जाता है। (याची यह उसका काम है)(अल-अबिया 21: 59-60)

काहिनों और सरदारों ने यह सुना तो ग़म व गुस्से से लाल हो गए और कहने लगे, इसको मज्मे के सामने पकड़ कर लाओ, ताकि सब देखें कि मुजरिम कौन आदमी है?इन्नाहीम सामने लाए गए तो बड़े रौब व दाव से उन्होंने पूछाः क्यों इब्राहीम! तूने हमारे देवताओं के साथ यह सब कुछ किया है?

तर्जुमा 'उन्होंने कहाः इब्राहीम को लोगों के सामने लाओ ताकि वे देखें। वे कहने लगे, क्या इब्राहीम! तूने हमारे देवताओं के साथ यह किया है?'(अल-अंबिया 21: 61-62)


इब्राहीम ने देखा कि अब वह बेहतरीन मौक़ा आ गया है, जिसके लिए मैंने यह तदबीर अख्तियार की। मज्मा मौजूद है। लोग देख रहे हैं कि उनके देवताओं का क्या हश्र हो गया इसलिए अब काहिनों, मज़हबी पेशवाओं को लोगों की मौजूदगी में उनके बातिल अक़ीदे पर शर्मिंदा कर देने का वक़्त है, तो आम लोगों को आंखों देखते मालूम हो जाए कि आज तक इन देवताओं से मुताल्लिक जो कुछ हमसे काहिनों और पुजारियों ने कहा था, यह सब उनका मकर व फ़रेब था। मुझे उनसे कहना चाहिए कि यह सब उस बड़े बुत की कार्रवाई है, उससे मालूम करो? ला महाला वे यही जवाब देंगे कि कहीं बुत भी बोलते और बात करते हैं, तब मेरा मतलब हासिल है और फिर मैं उनके अक़ीदे का पोल लोगों के सामने खोलकर सही अक़ीदे की तलक़ीन कर सकूंगा और बताऊंगा कि किस तरह वे बातिल और गुमराही में मुब्तला हैं। उस वक़्त उन काहिनों और पुजारियों के साथ शर्मिन्दगी के सिवा क्या होगा, इसलिए हज़रत इब्राहीम ने जवाब दिया


तर्जुमा- इब्राहीम ने कहा, बल्कि इनमें से इस बड़े बुत ने यह किया है पास जगाचे (तुम्हारे देवता) बोलते हों, तो इनसे मालूम कर लो (इब्राहीम की इस यक़ीनी हुज्जत और दलील का काहिनों और पुजारियों के पास क्या जवाब हो सकता था? वह शर्म से डूबे हुए थे, दिलों में जालील व रुस्वा थे और सोचते थे कि क्या जवाब दें? स्वाथ लोग भी आज सब कुछ समझ गए और उन्होंने अपनी आंखों से यह मंज़र देख लिया जिसके लिए वे तैयार न थे, यहां तक कि छोटे और बड़े सभी को दिल में इक़रार करना पड़ा कि इब्राहीम जालिम नहीं है, बल्कि ज़ालिम हम खुद हैं कि ऐसे बेदलील और बातिल अक्क़ीदे पर यक्क्रीन रखते हैं तब शर्म से सिर झुकाकर कहने लगे, 'इब्राहीम ! तू खूब जानता है कि इन देवताओं में बोलने की ताक़त नहीं है, ये तो बेजान मूर्तियां हैं।'

तर्जुमा- 'पस उन्होंने अपने जी में सोचा, फिर कहने लगे, बेशक तुम ही ज़ालिम हो। इसके बाद अपने-अपने सरों को नीचे झुका कर कहने लगे, (ए इब्राहीम!) तू खूब जानता है कि ये बोलने वाले नहीं हैं।

(अल-अंबिया, 21:56) इस तरह हज़रत इब्राहीम की हुज्जत व दलील कामयाब हुई और दुश्मनों ने मान लिया कि जालिम हम ही हैं और उनको तमाम लोगों के सामने जुबान से इक़रार करना पड़ा कि हमारे ये देवता जवाब देने और बोलने की ताक़त नहीं रखते, नफ़ा व नुक्सान का मालिक होना दूर की बात है, तो अब इब्राहीम ने थोड़े में, मगर जामे लफ़्ज़ों में उनको नसीहत भी की और मलामत भी और बताया कि जब ये देवता न नफ़ा पहुंचा सकते हैं, न नुक़सान, तो फिर ये ख़ुदा और माबूद कैसे हो सकते हैं, अफ़सोस ! तुम इतना भी नहीं समझते या अव्रत से काम नहीं लेते? फ़रमाने लगे-'क्या तुम अल्लाह तआला को छोड़कर उन चीज़ों की पूजा करते हो जो तुमको न कुछ नफ़ा पहुंचा सकते हैं और न नुक्सान दे सकते हैं, तुम पर अफ़सोस है और तुम्हारे इन झूठे माबूदों पर भी, जिनको तुम अल्लाह के सिवा पूजते हो, क्या तुम अक़्ल से काम नहीं लेते।' (अल-अंबिया 21 : 66-67).   क़ससुल अंबिया


तर्जुमा-'पस वे सब हल्ला करके इब्राहीम के गिर्द जमा हो गए। इब्राहीम ने कहा कि जिन बुतों को हाथ से गढ़ते हो, उन्हीं को फिर पूजते हो और असल यह है कि अल्लाह तआला ही ने तुमको पैदा किया है और उनको भी जिन कामों को तुम करते हो।'(अस्साफ़्फ़ात, 37: 95-96)

हज़रत इब्राहीम के इस वाज़ व नसीहत का असर यह होना चाहिए था कि तमाम क़ौम अपने बातिल अक़ीदे से तौबा करके मिल्लते हनीफ़ी को अख़्तियार कर लेती और टेढ़ा रास्ता छोड़कर सीधे रास्ते पर चल पड़ती, लेकिन दिलों का टेढ़, नफ़्स की सरकशी, घमंडी ज़ेहनियत और बातिनी ख़बासत व नीचपन ने इस ओर न आने दिया और इसके ख़िलाफ़ उन सबने इब्राहीम की अदावत व दुश्मनी का नारा बुलन्द कर दिया और एक दूसरे से कहने लगे कि अगर देवताओं की ख़ुश्नूदी चाहते हो तो उसको इस गुस्ताख़ी और मुज्रिमाना हरकत पर सख्त सज़ा दो और धधकती आग में जला डालो, ताकि उसकी तब्लीग व दावत का क़िस्सा ही पाक हो जाए।


बादशाह को इस्लाम की दावत और उसका मुनाज़रा अभी ये मश्विरे हो ही रहे थे कि थोड़ा-थोड़ा करके ये बातें वक़्त के बादशाह तक पहुंच गईं, उस जमाने में इराक़ के बादशाह का लक़ब नमरूद होता था और ये पब्लिक के सिर्फ़ बादशाह ही नहीं होते थे, बल्कि खुद को उनका रब और मालिक मानते थे और पब्लिक भी दूसरे देवताओं की तरह उसको अपना खुदा और माबूद मानती और उसकी इस तरह पूजा करती थी, जिस तरह देवताओं की, बल्कि उनसे भी पास व अदब के साथ पेश आती थी, इसलिए कि वह अक़्ल व शऊर वाला भी होता था और ताज व तख्त का मालिक भी नमरूद को जब यह मालूम हुआ तो आपे से बाहर हो गया और सोचने लगा कि उस आदमी की पैग़म्बराना दावत व तब्लीग की सरगर्मियां अगर इसी तरह जारी रहीं तो यह मेरे मालिक होने, रब होने, बादशाह होने और अल्लाह होने से भी सब पब्लिक को दूर कर देगा और इस तरह बाप-दादा के मजहब के साथ-साथ मेरी यह हुकूमत भी गिर जाएगी, इसलिए इस किस्से का शुरू ही में ख़त्म कर देना बेहतर है।खत्म चिकर उसने हुक्म दिया कि इब्राहीम को हमारे दरबार में हाजिर करो। इब्राहीम से मालूम किया कि तू बाप-दादा के दीन की मुखालफत किस लिए करता है और मुझको रब मानने से तुझे क्यों इंकार है?


इब्राहीम ॥ ने कहा कि मैं एक अल्लाह का मानने वाला हूं, उसके अलावा किसी को उसका शरीक नहीं मानता। सारी कायनात और तमाम आलम उसी की मख़्लूक़ हैं और वही इन सबका पैदा करने वाला और मालिक है। तू भी उसी तरह एक इंसान है, जिस तरह हम सब इंसान हैं, फिर तू किस तरह रब या खुदा हो सकता है और किस तरह ये गूंगे-बहरे लकड़ी के बुत ख़ुदा हो सकते हैं? मैं सही राह पर हूं और तुम सब ग़लत राह पर हो, इसलिए मैं हक़ की तब्लीग को किस तरह छोड़ सकता हूं और तुम्हारे बाप-दादा के अपने गढ़े हुए दीन को कैसे अख़्तियार कर सकता हूं?

नमरूद ने इब्राहीम से मालूम किया कि अगर मेरे अलावा तेरा कोई रख है तो उसकी ऐसी ख़ूबी बयान कर कि जिसकी कुदरत मुझमें न हो?तब इब्राहीम ने फ़रमाया, मेरा रब वह है जिसके क़ब्ज़े में मौत व ह्यात है, वही मौत देता है और वही जिंदगी बख़्शता है। टेढ़ी समझ वाला नमरूद, मौत व हयात की हक़ीक़त से ना आश्ना नमरूद कहने लगा, इस तरह मौत और जिंदगी तो मेरे क़ब्ज़े में भी है और यह कहकर उसी वक़्त एक बेक़सूर आदमी के बारे में जल्लाद को हुक्म दिया कि उसकी गरदन मार दो और मौत के घाट उतार दो। जल्लाद ने फ़ौरन हुक्म पूरा किया और क़त्ल की सज़ा पाये हुए मुज्रिम को जेल से बुलाकर हुक्म दिया कि जाओ हमने तुम्हारी जान बख़्शी की और फिर इब्राहीम की तरफ़ मुतवज्जह होकर कहने लगा- देखा, मैं भी किस तरह जिंदगी बख़्शता और मौत देता हूं, फिर तेरे अल्लाह की ख़ास बात क्या रही?इब्राहीम समझ गए कि नमरूद या तो मौत और जिंदगी की असल हक़ीक़त नहीं जानता और या लोगों और पब्लिक को ग़लतफ़हमी में डाल देना चाहता है, ताकि वे इस फ़र्क़ को समझ न सकें कि जिंदगी बख़्शना इसका नाम नहीं है बल्कि न से हां करने का नाम जिंदगी बख़्शना है। और इसी तरह किसी को क़त्ल या फांसी से बचा लेना मौत का मालिक होना नहीं है। मौत का मालिक वही है जो इंसानी रूह को उसके जिस्म से निकाल कर अपने क़ब्ज़े में कर लेता है, इसलिए बहुत से फांसी की सजा पाए हुए और तलवार की जद में आए हुए लोग जिंदगी पा जाते हैं और बहुत से क़त्ल व फांसी से बचाए हुए इंसान मौत के घाट चढ़ जाते हैं और कोई ताक़त उनको रोक नहीं सकती और अगर ऐसा हो सकता तो इब्राहीम से बातें करने वाला नमरूद गद्दी पर न बैठा होता, बल्कि उसके ख़ानदान का पहला आदमी ही आज भी उस ताज व तख़्त का मालिक नजर आता, मगर न मालूम कि इराक़ के इस राज्य के कितने दावेदार जमीन के अन्दर दफ़न हो चुके हैं और अभी कितनों की बारी है फिर भी इब्राहीम ने सोचा कि अगर मैंने इस मौके पर मौत और जिंदगी के बारीक फ़लसफ़े पर बहस शुरू कर दी, तो नमरूद का मक्सद पूरा हो जाएगा और लोगों को ग़लत रुख पर डालकर असल मामले को उलझा देगा और इस तरह मेरा नेक मक्सद पूरा न हो सकेगा और हक़ की तब्लीग़ के सिलसिले में भरी मफ़िल में नमरूद को लाजवाब करने का मौक़ा हाथ से जाता रहेगा, क्योंकि बहस व मुबाहसा और जल व मुनाजरा मेरा असल मक़्सद नहीं है, बल्कि लोगों के दिल व दिमाग़ में एक अल्लाह का यक़ीन पैदा करना मेरा एक ही मक्सद है, इसलिए उन्होंने इस दलील को नज़रंदाज़ करके समझाने का एक दूसरा तरीक़ा अपनाया और ऐसी दलील पेश की, जिसे सुबह व शाम हर आदमी आंखों से देखता और बगैर किसी मंतक़ी दलील के दिन व रात की जिंदगी में उससे दोचार होता रहता है।इब्राहीम ने फ़रमायाः मैं उस हस्ती को 'अल्लाह' कहता हूं जो हर दिन सूरज को पूरब से लाता और मरिरब की तरफ़ ले जाता है, पस अगर तू भी इसी तरह खुदाई का दावा करता है, तो इसके ख़िलाफ़ सूरज को मरिब से निकाल और मशिरक़ में छिपा। यह सुनकर नमरूद घबरा गया और उससे कोई जवाब न बन पड़ा और इस तरह इब्राहीम की जुबान से नमरूद पर अल्लाह की हुज्जत पूरी हुई।नमरूद इस दलील से घबराया क्यों और उसक पास इसके मुक़ाबले में गलत समझने की गुंजाइश क्यों न रही? यह इसलिए कि इब्राहीम की शीर का हासिल यह था कि मैं एक ऐसी हस्ती को अल्लाह मानता हूं, जिसके बो में मेरा अक्रीदा यह है कि यह सारी कायनात और इसका सारा निजाम उस ही ने बनाया है और उसने इस पूरे निजाम की अपनी हिक्मत के झानून से ऐसा कस दिया है कि उसकी कोई चीज मुक्रर्रर जगह से पहले अपनी जगह से हट नहीं सकती है और न इधर-उधर हो सकती है। तुम इस पूरे निजाम में से सूरज ही को देखो कि दुनिया उससे कितने फ्रायदे हासिल करती है। साथ ही अल्लाह ने उसके निकलने और डूबने का भी एक निजाम मुकर्रर का दिया है, पस अगर सूरज लाख बार भी चाहे कि वह इस निजाम से बाहर हो जाए तो इस पर उसे कुदरत नहीं है, क्योंकि उसकी बागडोर एक अल्लाह की कुदरत के क़ब्जे में है और उसको बेशक यह कुदरत है कि जो चाहे कर गुजरे, लेकिन वह करता वही है जो उसकी हिक्मत का तक़ाज़ा है इसलिए अब नमरूद के लिए तीन ही शक्लें जवाब देने की हो सकती थीं, या वह यह कहे कि मुझे सूरज पर पूरी कुदरत हासिल है और मैंने भी यह सारा निजाम बनाया है, मगर उसने यह जवाब इसलिए नहीं दिया कि वह खुद इसका क्रायल नहीं था कि यह सारी कायनात उसने बनाई है और सूरज की हरकत उसकी कुदरत के कब्जे में है, बल्कि वह तो खुद को अपनी रियाया का रब और देवता कहलाता था और बस ।दूसरी शक्त यह थी कि वह कहता, 'मैं इस दुनिया को किसी की पैदा की हुई नहीं मानता और सूरज तो मुस्तक्रिल खुद देवता है, उसके अख्तियार में खुद बहुत कुछ है, मगर उसने यह भी इसलिए न कहा कि अगर वह ऐसा कहता, तो इब्राहीम का वही एतराज सामने आ जाता जो उन्होंने सबके सामने सूरज के रब होने के ख़िलाफ़ उठाया था कि अगर वह 'रब' है तो इबादत करने वालों और पुजारियों से ज़्यादा इस माबूद और देवता में तब्दीलियां और फ़ना के असरात क्यों मौजूद हैं?' 'रब' को फ्रना और तब्दीली से क्या वास्ता ? और क्या उसकी कुदरत में यह है कि अगर वह चाहे तो मुकर्रर वक़्त से पहले या बाद निकले या डूब जाए? तीसरी शक्ल यह थी कि इब्राहीम के चैलेंज को कुबूल कर लेता और


मरिब से निकाल कर दिखा देता, मगर नमरूद चूंकि इन तीनों शक्लों में से किसी शक्ल में जवाब देने की कुदरत न रखता था, इसलिए परेशान और लाजवाब हो जाने के अलावा उसके पास कोई दूसरा रास्ता ही नहीं बचा।ग़रज़ हज़रत इब्राहीम ने सबसे पहले अपने वालिद आज़र से इस्लाम के सिलसिले की बात कही, हक़ का पैग़ाम सुनाया और सीधा रास्ता दिखलाया। इसके बाद आम लोग और सब लोगों के सामने हक़ को मान लेने के लिए फ़ितरत के बेहतरीन उसूल और दलील पेश किए, नर्मी से, मीठी बातों से मगर मजबूत और रोशन हुज्जत व दलील के साथ उन पर हक़ को वाज़ेह किया और सबसे आख़िर में बादशाह नमरूद से मुनाज़रा किया और उस पर रोशन कर दिया कि रब होने और माबूद होने का हक़ सिर्फ़ एक अल्लाह ही के लिए सबसे मुनासिब है और बड़े-से-बड़े शहंशाह को भी यह हक़ नहीं है कि वह उसकी बराबरी का दावा करे, क्योंकि वह और कुल दुनिया उसी की मख़्तून है और वजूद व अदम के क़ैद व बन्द में गिरफ्तार, मगर इसके बावजूद कि बादशाह, आज़र और आम लोग, हजरत इब्राहीम की दलीलों से लाजवाब होते और दिलों में क़ायल, बल्कि बुतों के वाक़िए में तो जुबान से इक़रार करना पड़ा कि इब्राहीम जो कुछ कहता है, वही हक़ है और सही व दुरुस्त, फिर भी उनमें से किसी ने सीधे रास्ते को न अपनाया और हक़ कुबूल करने से बचते रहे और इतना ही नहीं, बल्कि इसके ख़िलाफ़ अपनी नदामत और ज़िल्लत से मुतास्सिर होकर बहुत ज़्यादा ग़ज़ व ग़ज़ब में आ गए और बादशाह से रियाया तक सब ने एक होकर फ़ैसला कर लिया कि देवताओं की तौहीन और बाप-दादा के दीन की मुखालफत में इब्राहीम को धधकती आग में जला देना चाहिए, क्योंकि ऐसे सख्त मुज्रिम की सज़ा यही हो सकती है और देवताओं को हक़ीर समझने का बदला इसी तरह लिया जा सकता है।

हजरत इब्राहिम को आग में डाल ना

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